मंगलाचरण (HH Shri Pundrik Goswami Ji Maharaj (Gaudiya) " ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने . प्रणत : क्लेशनाशाय गोव...
मंगलाचरण
(HH Shri Pundrik Goswami Ji Maharaj (Gaudiya)
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय
हरये
परमात्मने.
प्रणत:
क्लेशनाशाय
गोविंदाय
नमो
नम:"
"सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे!
तापत्रय
विनाशाय
श्री
कृष्णाय
वयं
नम:
!!"
" हरे कृष्ण हरे
कृष्ण
कृष्ण
कृष्ण
हरे
हरे,
हरे
राम
हरे
राम
राम
राम
हरे
हरे"
मंगलाचरण
भी स्वतः एक
सूत्र ही है,जैसे एक
धागा मोतियों को
पिरो पिरो कर
माला बनता है
और उसे किसी
के कंठ की
शोभा बनाता है,
ऐसे ही भक्ति
के अनेकानेक भावो
को मंगलाचरण के
रूप में अपने
आराध्य का ध्यान
किया जाता है,
यहाँ ध्यान शब्द
का प्रयोग भी
किसी सूत्र के
रूप में किया
है महाराज श्री
जी ने,प्रार्थना
शब्द नहीं कहा
गया क्योंकि महाराज
श्री बतलाते है
की, " प्रार्थना में हम
अपनी बात बोलते
है प्रभु को
सुनाने के लिए
किन्तु ध्यान में भगवान्
बोलते है और
हम सुनते है"
इसलिए मंगलाचरण भगवान्
की आवाज़ को
सुनने के लिए
किया जाता है,
मंगलाचरण में भगवान्
के रूप, नाम,
आचरण को ध्यान
में लाकर हृदय
की गहराइयों से
संवाद किया जाता
है,अपने प्रभु
को पुकारा जाता
है, की
हे
नाथ ! आप आइये
और हमारे हृदय
रुपी आसान पर
विराजमान होकर अपनी
बात सुनाइए, भक्त
जब भगवान का
आह्वान अपने हृदय
से करता हे
तो स्वयं राधारमण
देव उस हृदय
आसान पर विराजकर
स्वयं बोलते हे,
उस समय व्यास
गद्दी से वक्त
स्वयं भगवान् ही
होते हे, इसलिए
मंगलाचरण सबसे महत्वपूर्ण
सूत्र हे किसी
भी कथा के
लिए,
महाराज
श्री द्वारा जब
कथा के प्रारम्भ
में मंगलाचरण किया
जाता हे, तो
वह अति अद्भुत
होता हे, हमने
आपने कई बार
सुना भी होगा,
वह मंगलाचरण केवल
शब्दों की अभिव्यक्ति
नहीं होती बल्कि,
करुणामयी पुकार होती हे,
ऐसी पुकार जैसे
बालक अपनी माँ
से बिछुड़ जाए
और आंतरिक तड़प
और वियोग के
कारण माँ माँ
पुकारता हे, उस
समय उसे दुनिया
की कोई भी
संपत्ति लेने को
कहा जाए, वह
ध्यान ही नहीं
देगा, केवल उसकी
पुकार में माँ
माँ का ही
स्वर सुनाई देगा,उसकी पुकार
और उसकी माँ
के मध्य कोई
दूसरा नहीं होता,
इतना भावपूरित मंगलाचरण
कही ओर मैंने
नहीं श्रवण किया,
महाराज श्री अक्सर
कहते भी हे,"
व्यासपीठ से यदि
मैं सोचकर बोलता
हूँ तो वह
केवल मेरी ही
वाणी होगी,किन्तु
जब मैं मई
नहीं होकर राधारमण
देव जी की
इच्छा से बोलता
हूँ तो वह
मेरे वचन नहीं
स्वयं राधारमण जी
के वचनो का
प्रवाह बहता हैं",
इसलिए मैं श्री
राधारमण जी को
पुकारता हूँ,उनका
मंगलाचरण करता हूँ
की हे केशव
देव आपके चरण
सभी का मंगल
करने वाले हे
उन्ही मंगलचरणो में
मैं अपने आप
को समर्पित करता
हुआ आपका आह्वान
करता हूँ,
"जय जय श्री
राधा रमन देव जू"
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