स्वामी विवेकानंद दृष्टान्त १ खंडवा की बात है,एक बार स्वामी जी बैरिस्टर हरिदास चट्टोपाध्याय के यह ठहरे , जब वह उनसे मिले तो कुछ बंगाल...
स्वामी विवेकानंद दृष्टान्त १
खंडवा की बात है,एक बार स्वामी जी बैरिस्टर हरिदास चट्टोपाध्याय के यह ठहरे , जब वह उनसे मिले तो कुछ बंगाली में बोले जिसे सुनकर बैरिस्टर प्रसन्न हुए क्योंकि बंगाली को बंगाली मिलने से प्रसन्नता होती है, वे स्वामी जी को अपने घर ले गए, लेकिन स्वामी जी बोले एक बंगाली को बंगाली से मिलकर प्रसन्नता होती है इसे यही सिमित नहीं करे,हम बंगाली है यह सही है किन्तु यही तक सिमित न रहे,मनुष्य बन सके तो बेहतर है,नहीं तो भारतीय तो बन ही जाना चाहिए, अर्थात स्वामी जी सभी को भारतीय बनाना चाहते थे, उनकी दृष्टि में प्रांतीय भेद कुछ भी नहीं है,
स्वामी जी, बैरिस्टर साहब के आग्रह से धर्म चर्चा और लोगो को जोड़ने के लिए कुछ समय वही रुके, खंडवा के सिविल जज माधवचंद्र बंदोपाध्याय के निवास पर स्वामी जी के सम्मान में भोज का आयोजन किया गया, वही पर सारा बंगाली समाज जुड़ गया,
सभी ने कहा, स्वामी जी भोज से पहले संगीत, धर्मचर्चा बाद में, स्वामी जी बोले आप भोजन के बाद घर लोट जायेंगे तो धर्म चर्चा कैसे होगी? लेकिन लोगो का रुझान संगीत की ओर देखकर स्वामी जी ने उनकी बात स्वीकार कर ली, ओर संगीत शुरू किया,क्योंकि धर्म चर्चा में किसी का ज्यादा उत्साह नहीं था,
स्वामी जी ने गाया,
" ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात पूर्णमुदच्यते I
पूर्णस्य पूर्णमादाय , पूर्णमेवावशिष्यते II
इन्ही पंक्तियों को स्वामी जी ने घुमाफिराकर अनेक बंदिशों में गया, उनके स्वर का जादू स्पष्ट ही सबको बाँध रहा था,
जैसे ही स्वामी जी रुके शोर शुरू हो गया, स्वामी ने पूछा," क्या आपको मेरा संगीत पसंद नहीं आया?" लोग बोले ऐसी बात नहीं है संगीत तो बहुत बढ़िया है किन्तु जो आप गा रहे थे शायद वह उपनिषद से कुछ है, जोकि समझ नहीं आ रहा है,हमारा इससे कोई परिचय नहीं है,
स्वामी बोले," हाँ,यह ईशावास्योपनिषद का पहला मंत्र है, संगीत तो आपको कोई भी सुना देगा किन्तु यदि एक सन्यासी भी उपनिषद की चर्चा न करे तो कौन करेगा?"
हरी बाबू, " बात तो ठीक है आपकी, किन्तु उपनिषद समझ भी तो आना चाहिए",
" बहुत सरल अर्थ है, ऋषि ने कहा है, कि 'वह पूर्ण है,यह भी पूर्ण है,पूर्ण में से पूर्ण ही उत्पन्न होता है, और यदि पूर्ण में से पूर्ण को निकाल ले,तो भी पूर्ण ही शेष बचता है," स्वामी जी ने कहा,
प्यारेलाल गांगुली ने टिपण्णी की," यह कोई कविता है या पहेली?" हमारे धर्मग्रंथो में ऐसी उटपटांग बाते भरी हुयी है तभी कोई उनको पढता नहीं है," ये महोदय वकील और संस्कृत के ज्ञाता है और अहंकारी भी ये सब जानते थे सभा में,
स्वामी जी बोले," सत्य कहा आपने, जिन मंत्रो को सहस्त्रो लोगो ने गले का हार बनाया है, उनके विषय में आपका क्या विचार है? कि कोई इनको पढ़ता नहीं है, क्योंकि आपने नहीं पढ़ा इसलिए आप ऐसा सोचते है,"
स्वामी जी हँसे और कहने लगे," उपनिषद का पहला प्रमाण तो आप ही है,आप अपने आप को पूर्ण मानते है,क्योंकि आपने नहीं पढ़ा तो किसी ने भी नहीं पढ़ा होगा, अर्थात आप ने अपने को पूर्ण माना है,"
प्यारेलाल गांगुली लोगो कि हँसी देखकर कुछ झेंप तो गए किन्तु बोले," अच्छा मान लिया कि लोग पढ़ते है,कंठस्थ करते है,किन्तु समझते भी है,ऐसा कोई नहीं मिला मुझे ?"
स्वामी जी ने कहा ,"आज उम्मीद करता हूँ कि आपकी खोज पूर्ण हो जाए, आपको कोई ऐसा मिले जो इसे समझता भी हो और आपको भी समझा दे," स्वामी जी गंभीर हो गए थे,और कहने लगे अब इस उटपटांग बात क्या है इसे समझे,
इस मंत्र में ,"वह का तातपर्य है ब्रह्मा,हम सब जानते है ब्रह्मा पूर्ण है,"
नेचर को बंगला में प्रकृति कहते है, महाशय 'मदर नेचर' अर्थात 'जगदम्बा' माँ दुर्गा,"
स्वामी जी बोले, "यह का अर्थ है सृष्टि, हम जानते है कि सृष्टि,प्रकृति भी अपनेआप में पूर्ण है,"
तभी बसु बाबू बोले," सृष्टि कहाँ से पूर्ण हो गयी?"
स्वामी जी बोले," सृष्टि से अभिप्राय 'प्रकृति' आज के वैज्ञानिक प्रकृति का अध्ययन कर उसके नियमो का आविष्कार कर रहे है,और पाते है कि Nature is complete in itself " "ब्रह्मा में से प्रकृति का जन्म हुआ है,पूर्ण में से पूर्ण का जन्म हुआ है",
बसु बाबू पुनः बोले," क्या प्रमाण है इस बात का?"
स्वामी जी ने सामने बैठी एक माँ और बेटी कि और इशारा करते हुए पूछा," आप इन्हे जानते है?"
हां,यह गांगुली बाबू कि पत्नी और बेटी है, बसु बोले,
"गांगुली बाबू, आपकी पत्नी पूर्ण स्त्री है या नहीं?"
गांगुली बाबू बोले," जी, हां यह पूर्ण है,"
"आपकी बेटी जो इनसे पैदा हुयी है, वह भी पूर्ण है?" स्वामी ने फिर से पूछा,
"हाँ, यह भी पूर्ण है" सबने स्वीकार किया,
" यही है पूर्ण में से पूर्ण का जन्म होना,गूलर से पूर्ण बरगद का जन्म होता है,और बरगद से अनेक गुलरो का,और वे सारे गूलर अपने आप में पूर्ण होते है,और कितने ही पूर्ण वटवृक्ष उगा सकते है, कितने उदहारण चाहिए आपको", स्वामी जी ने कहाँ,
बसु बाबू फिर बोले," ये उद्धरण तो ठीक है, किन्तु गणित का विज्ञान इनको नहीं मानता, पूर्ण में से पूर्ण निकाल देंगे तो क्या बचेगा? अंडा, दस में से दस निकाल लेंगे तो दस नहीं जीरो बचेगा,
यदि ऐसा होता तो में दस रूपये खर्च करता फिर दस ही बच जाते, सरकार अपने कोष से तनख्वाह बाँट देती उसके बाद भी खजाने भरे रहते,
स्वामी जी बोले," गणित तो अपने आप में पूर्ण विज्ञान है, उसे अभी छोड़ दीजिये, जो माँ संतान को जन्म देती है, क्या वह अपूर्ण हो जाती है? वह आपको कही से भी अधूरी लगती है? क्या अभाव का अनुभव होता ? संतान को पैदा करने के बाद भी वह सम्पूर्ण है, आम कि एक गुठली से एक वृक्ष बनता है,और उसी वृक्ष से सहस्त्रो आम और गुठलिया बनती है, फिर से हज़ारो वृक्ष बन जाते है, तो क्या वृक्ष कही से अपूर्ण हुआ?
बसु बाबू थोड़ा ऐंठे और बोले," गणित कि बात कीजिये, महाशय, कृषि शास्त्र रहने दीजिये,"
स्वामी जी," चलो गणित कि ही बात करते है, दस में दस घटाए तो शून्य और दस में दस जोड़े तो बीस,ठीक है ना,अब गणितज्ञ ये बताये पूर्ण संख्या क्या है,दस,बीस या शून्य या इंफिनिटी ?"
माधवचंद्र बंदोपाध्याय बोले," पूर्ण तो शून्य ही है, न दस है न बीस है",
स्वामी जी बोले," फिर शून्य में से शून्य घटाइए, और शून्य में शून्य जोड़िये, फल क्या आएगा? शून्य ही आएगा न,"
जैसे ही सब ने सुना और समझा सब सकपका गए जैसे किसी अदृश्य रहस्य पर से पर्दा उठ गया हो,
" समुद्र में से मेघ उठते है और सारे संसार का सिंचन कर देते है,फिर भी सागर कि पूर्णता में कोई कमी नहीं आती है, वैसे ही मेघो का बरसाया हुआ सर जल समुद्र में आ मिलता है,तब भी समुद्र एक से दो नहीं होते वही एक ही रहता है,अर्थात पूर्ण ही रहता है,
गांगुली बाबू फिर से अटक गए," पूर्ण में पूर्ण को कैसे जोड़?"
"मनुष्य हो, पशु या पक्षी या वनस्पति अपने क्षय के बाद वह पंचभूतों में विभाजित हो जाते है,और प्रकृति में मिल जाते है, तब भी प्रकृति पूर्ण पूर्ण ही रहती है, पूर्ण से अधिक कुछ हो नहीं जाती,"
अर्थात हम सब प्रकृति के पांच तत्वों से बने है, और अंत में उन्ही प्रकृति के पांच तत्वों में हमारा विलय हो जाये है, अर्थात पूर्ण से जन्म लेकर पूर्ण में ही समा जाते है,
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