कमला (पद्मिनी) एकादशी व्रत कथा (अधिकमास शुक्ल पक्ष) एकादशी व्रत का महात्मय किसी भी वैष्णव से छिपा नहीं है, और उसमे भी अधिकमास की ...
कमला (पद्मिनी) एकादशी व्रत कथा
एकादशी व्रत का महात्मय किसी भी वैष्णव से छिपा नहीं है, और उसमे भी अधिकमास की एकादशी विशेष फलदायी होती है, क्योंकि यह एकादशी तीन वर्षो में एकबार आती है, अन्य वर्षो की तुलना में दो एकादशियाँ इस वर्ष में अधिक होती है, जो लोग छब्बीस एकादशी व्रत धारण करते है उनकी एकादशी व्रत अधिकमास की एकादशियो के व्रत से ही पूर्ण होते है, पुरुषोत्तम मास का वैसे भी अधिक महत्व है और उसमे भी भगवान् विष्णु जी की परम् प्रिय एकादशी तिथि बहुत ही पवित्र है,ईश्वर सर्वतः हैं। वे दुष्प्राप्य वस्तुओं को भी देने में समर्थ हैं, परंतु प्रभु को प्रसन्न करके अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने का मार्ग मनुष्य को जानना चाहिए। पद्मिनी एकादशी प्रभु की प्रिय तिथि है, जप-तप से भी ज्यादा प्रभावशाली इसका व्रत मनुष्य को दुष्प्राप्य वस्तुओं को भी प्राप्त करा देता है।
एकादशी के दिन चैतन्यमहाप्रभु प्रदत महामंत्र " हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे , हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" का अत्यदिक नाम सुमिरन करना चाहिए, यह वह मन्त्र है जो सभी वैष्णवों को अतिशय प्रिय है और इसी मन्त्र में वह सामर्थ्य है जो भक्तो को भगवान् से मिला देता है, एकादशी प्रिय तिथि उस दिन महामंत्र जो की बहुत अधिक प्रिय प्रभु को और उस पर भी अधिकमास यह तो मूल के ब्याज पर ब्याज और उसका भी ब्याज मिलने वाली बात है, बनिया हूँ न इसीलिए बता रहा हूँ इससे अधिक लाभप्रद तिथि और नहीं है,बोलिये पद्मिनी एकादशी भगवान् की जय, श्री कृशनचंद्र भगवन की जय, लक्ष्मीनारायण भगवान् की जय ..
किसी भी एकादशी व्रत के दौरान निचे दिए कार्य नहीं करने चाहिए :
1.विष्णु पुराण के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत की अवधि में चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत को लेकर विष्णु पुराण में ऐसा वर्णन मिलता है कि जो व्रती व्रत के दौरान चावल का सेवन करता है वह पाप का भागी बनता है। वैसे भी एकादशी को चावल का सेवन निषिद्ध होता है,
2.शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने वाले को इस रात सोना नहीं चाहिए। रात्रि में भगवान विष्णु के नाम का भजन-कीर्तन करना उत्तम माना गया है। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। रात्रि भजन सदैव आनंदमयी होता है और श्री नारायण को अति प्रिय है, ज्यादा से ज्यादा महामंत्र का जाप किया जाए तो बहुत ही बढ़िया होता है,
3.एकादशी के दिन व्रती को पान नहीं खाना चाहिए। इस दिन पान खाना अशुभ माना गया है। पान खाने से मन में रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है। व्रत अर्थात त्याग इस दिन सात्विक ही रहना चाहिए इसीलिए ऐसा प्रावधान लिखा गया है,
4.एकादशी व्रत के दौरान क्रोध करना सर्वथा वर्जित माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के दौरान क्रोध करना एक प्रकार की मानसिक हिंसा है। इसलिए व्रत की अवधि में क्रोध नहीं करना चाहिए। वैसे भी क्रोध सभी पापो को जन्म देता है, इसलिए सदैव ही इससे बचना चाहिए,
5. एकादशी के दिन भूलकर भी दातुन से दांत साफ नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन किसी भी पेड़ की टहनियों को तोड़ने से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं। ऐसा उन्ही के लिए है जो दातुन करते है, वैसे सधारण पेस्ट में भी नमक इत्यादि रहता है तो कुछ लोग इसे निषिद्ध मानते है,
वर्ष 2018 : एकादशी व्रत की तारीखें और इनके नाम , इस वर्ष क्योंकि पुरुषोत्तम मास है तो पूर्ण छब्बीस एकादशी होंगी इस वर्ष, जो लोग एकादशी व्रत करने में समर्थ नहीं है, वह केवल इन छब्बीस एकादशियो के नाम का कीर्तन भी करे तो उन्हें एकादशी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है, इसलिए सभी वैष्णवों को इनके नाम अवश्य उच्चारण करने चाहिए,
1. 12 जनवरी : षटतिला एकादशी
2. 27/28 जनवरी : जया/अजा एकादशी
3. 11 फरवरी : विजया एकादशी
4. 26 फरवरी : आमलकी एकादशी
5. 13 मार्च : पापमोचनी एकादशी
6. 27 मार्च : कामदा एकादशी
7. 12 अप्रैल : वरुथिनी एकादशी
8. 26 अप्रैल : मोहिनी एकादशी
10. 25 मई पुरुषोत्तमी, कमला एकादशी
11. 10 जून : पुरुषोत्तमी, कमला एकादशी
12. 23/24 जून : निर्जला एकादशी
13. 9 जुलाई : योगिनी एकादशी
14. 23 जुलाई : देवशयनी एकादशी
15. 7 अगस्त : कामिका एकादशी
16. 21/22 अगस्त : पुत्रदा, पवित्रा एकादशी
17. 6 सितंबर : जया/अजा एकादशी
18. 20 सितंबर : पद्मा, जलझूलनी एकादशी
19. 5 अक्टूबर : इंदिरा एकादशी
20. 20 अक्टूबर : पापांकुशा एकादशी
21. 3 नवंबर : रंभा (रमा) एकादशी
22. 19 नवंबर : देवउठनी एकादशी
23. 3 दिसंबर : उत्पन्ना एकादशी
24. 18/19 दिसंबर : मोक्षदा एकादशी
25. 1 जनवरी : सफला एकादशी
धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! अधिकमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले, हे राजन्- अधिकमास में शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
अधिकमास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशियां होती हैं। अधिकमास में 2 एकादशियां होती हैं, जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं। ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी।
भगवान कृष्ण बोले- मलमास में अनेक पुण्यों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है, जो मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है।
यह एकादशी करने के लिए दशमी के दिन व्रत का आरंभ करके कांसे के पात्र में जौ-चावल आदि का भोजन करें तथा नमक न खाएं। भूमि पर सोएं और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में शौच आदि से निवृत्त होकर दंतधावन करें और जल के 12 कुल्ले करके शुद्ध हो जाएं।
सूर्य उदय होने के पूर्व उत्तम तीर्थ में स्नान करने जाएं। इसमें गोबर, मिट्टी, तिल तथा कुशा व आंवले के चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करें। श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु के मंदिर जाकर पूजा-अर्चना करें।
हे मुनिवर! पूर्वकाल में त्रेयायुग में हैहय नामक राजा के वंश में कृतवीर्य नाम का राजा महिष्मती पुरी में राज्य करता था। उस राजा की 1,000 परम प्रिय स्त्रियां थीं, परंतु उनमें से किसी को भी पुत्र नहीं था, जो कि उनके राज्यभार को संभाल सके। देवता, पितृ, सिद्ध तथा अनेक चिकित्सकों आदि से राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए काफी प्रयत्न किए, लेकिन सब असफल रहे।
तब राजा ने तपस्या करने का निश्चय किया। महाराज के साथ उनकी परम प्रिय रानी, जो इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए राजा हरिश्चंद्र की पद्मिनी नाम वाली कन्या थीं, राजा के साथ वन में जाने को तैयार हो गई। दोनों अपने मंत्री को राज्यभार सौंपकर राजसी वेष त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए।
राजा ने उस पर्वत पर 10 हजार वर्ष तक तप किया, परंतु फिर भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई। तब पतिव्रता रानी कमलनयनी पद्मिनी से अनुसूया ने कहा- 12 मास से अधिक महत्वपूर्ण मलमास होता है, जो 32 मास पश्चात आता है। उसमें द्वादशीयुक्त पद्मिनी शुक्ल पक्ष की एकादशी का जागरण समेत व्रत करने से तुम्हारी सारी मनोकामना पूर्ण होगी। इस व्रत के करने से भगवान तुम पर प्रसन्न होकर तुम्हें शीघ्र ही पुत्र देंगे।
रानी पद्मिनी ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से एकादशी का व्रत किया। वह एकादशी को निराहार रहकर रात्रि जागरण करती। इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। इसी के प्रभाव से पद्मिनी के घर कार्तवीर्य उत्पन्न हुए। जो बलवान थे और उनके समान तीनों लोकों में कोई बलवान नहीं था। तीनों लोकों में भगवान के सिवा उनको जीतने का सामर्थ्य किसी में नहीं था।
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