कृष्णं वन्दे जगतद् गुरुम् "कृष्ण केवल नाम ही पर्याप्त है" कृष्ण को क्या कोई, नचनिया समझ लिया है? कृष्ण को कोई वैश्या मान ल...
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कृष्णं वन्दे जगतद् गुरुम् |
कुछ रुपया पैसा देकर नाचने वालो को बुला लिया, कृष्ण का वेश धरा दिया, जैसे दिल में आये वैसे नाचने के लिए कहते हो, क्यों कृष्ण तुम्हारी रखैल है, क्या? कितनी पीड़ा और विडंबना होती है? जब कही प्राय प्राय यही वीभत्स रूप सामने आता है,कृष्ण का, लोगो ने, और सबसे ज्यादा गायको ने जोकि गाना जानते नहीं, अपना कार्यक्रम जम जाए, अपनी जेब गर्म हो जाए, बस इसीलिए कुछ कलाकार को कृष्ण बना लाते है, नाचो, जैसे हम इशारा करे नाचो, अरे जिसके नचाये तुम इस जगत में नाच रहे हो, जिसकी कठपुतली तुम बनकर इस धरती पर आये हो, उसे नचाने चले हो, ये कैसा स्वागत है कृष्ण का ? ये कैसा सम्मान है, कृष्ण का?
जिसे शास्त्रों ने स्पष्ट बता दिया है,
'वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगतद् गुरुम् ||'
कृष्ण जगद के गुरु है, क्या ऐसा सत्कार होता है गुरु का ? अपने मनोरंजन के लिए अपने ही गुरु को, ईश्वर को नचाओगे, रूपये उड़ाओगे, अपनी बाहो में भरकर प्रेम से नहीं, वासना और इच्छापूर्ति के लिए उसे नचाओगे, कहा है बुद्धि, विवेक ? या कृष्ण को ही लाचार बना दिया? कितनी शर्म और विडंबना का विषय बना दिया कृष्ण को,
यदि नचाना ही है तो कोई उनका भक्त बनो कोई, केवल कृष्ण को अपना सर्वस्व देकर देखो फिर नचा लो, और तुम क्या नचाओगे? वह खुद नाचेगा, उसे नचाने से पहले खुद तो मीरा के जैसा बनकर नाचो उसके सामने, मीरा ने न केवल इस लोक-लाज को बल्कि खुद को भी बिसरा दिया, भुला दिया कृष्ण प्रेम में अपने आपको, भूल गयी की वो कोई महारानी है, मेवाड़ की, भूल गयी हज़ारो दास दासिया है उसके,
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Meera Bai dancing for Krishna |
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची, रे ।
मैं तो मेरे नारायण की, आपहि होगइ दासी, रे ।
लोग कहें मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल नासी, रे ।I
बिष का प्याला राणाजी भेज्या, पीवत मीरा हांसी, रे ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी, रे ।।
क्या मीरा के जैसा तुम नाच पाओगे? गिरधर को नचाना चाहते हो ?, क्या कभी उसके नाम के घुंघरू बाँध कर, उसके प्रेम में लिप्त होकर खुद नाचे हो? यदि हाँ है तुम्हारा जवाब, तो कृष्ण को तुम नहीं नचाओगे वो खुद नाचने दौड़ा आएगा की मेरा कोई भक्त नाच रहा है, आज में भी उसके साथ नाचूंगा,
कृष्ण को नचाना है न, कभी बृज की गोपी, ग्वाले, अहिरनिया बनकर देखो, फिर कृष्ण को नचा लेना, ये गोपिकाये कृष्ण पर धन नहीं लुटाती है, काम, मोह और माया नहीं बरसाती है, बल्कि विशुद्ध प्रेम करती है, क्या तुम्हारे भीतर वह प्रेम है? जो मोहन के साथ नाचना और कृष्ण को नचाना चाहते हो,
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Krishna Dancing for Gopi's |
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तू पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
गोपियों के प्रेम के वशीभूत कृष्ण छाछ के लिए भी नाचने लगते है, क्यों उनके घर में छाछ, माखन की कमी है क्या? लाखो गौधन है नन्द बाबा के पास, सहस्त्रो दूधिया, दूध का दोहन करते है, क्या उनके यहाँ माखन नहीं है? किन्तु वो कृष्ण है, वह केवल प्रेम के लिए नाचता है,
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Chaitnya Mahaprabhu with Nitai |
कृष्ण को मेरे भाइयो, मेरे भारतवर्ष के बुद्धिजीवियों,कोई नाचने वाला मत बनाओ, आने वाली पीढ़िया कृष्ण का ऐसा रूप देखकर उन्हें क्या जानेगी? क्या समझेगी? कृष्ण जो की पूर्ण ब्रह्माण्ड के आदर्श नायक है, उसे आने वाली पीढ़िया क्या जानेगी? ऐसा है जगद्गुरु, मत सनातन धरम का उपहास करो, हम दुसरो पर आरोप लगाते है की ये राम के विरुद्ध है, वो कृष्ण के विरुद्ध है, पहले खुद हम तो अपने राम, कृष्ण के सही स्वरुप को पहचाने, हम तो उनका आदर करे, हम तो उनकी शिक्षा को समझे, यदि हम स्वयं ही उपहास का पात्र या मनोरंजन का साधन बना देंगे, अपने जगद्गुरु को तो, अन्य से क्यों आशा करे? की वह उनका सम्मान करे,
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