अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)
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अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)

अपरा (अचला) एकादशी ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा एकादशी है, अपरा अर्थात जिसका कोई पार नहीं है, ऐसी ही यह एकादशी भी मनु...

Padmini Ekadashi Vrat Katha 25th May 2018:कमला (पद्मिनी) एकादशी व्रत कथा(अधिकमास शुक्ल पक्ष)
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अपरा (अचला) एकादशी

ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अपरा एकादशी है, अपरा अर्थात जिसका कोई पार नहीं है, ऐसी ही यह एकादशी भी मनुष्य के अपार पुण्यो का वर्धन करने वाली है और बहुत से पापो के समूह को नाश कर देती है, जैसे जंगल को एक छोटी सी अग्नि की चिंगारी जलाकर भस्म कर देती है ऐसे ही यह व्रत मनुष्य के अनेक पापो का अंत कर देता है, यह एकादशी ११ मई २०१८ को है, आइये इस एकादशी का महत्व और कथा को जानते है,

एकादशी व्रत की विधि : 
अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है. इस एकादशी का व्रत करने से लोग पापों से मुक्ति होकर भवसागर से तर जाते हैं. पुराणों में एकादशी के व्रत के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए. एकादशी के दिन सुबह उठकर, स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूजा में तुलसीदल, श्रीखंड चंदन, गंगाजल व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए. व्रत रखने वाले को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट से बचना चाहिए.




युधिष्ठिर कहने लगे कि ,"हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?" 

अपरा एकादशी व्रत महात्म्य:
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि," हे राजन! यह एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं। "

इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं। 
जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं। 

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है। 



यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए ‍अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है। 

व्रत कथा इस प्रकार है:

इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। 
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। 

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। 
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।


किसी भी एकादशी व्रत के दौरान निचे दिए कार्य नहीं करने चाहिए :

1.विष्णु पुराण के अनुसार अपरा एकादशी के व्रत की अवधि में चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। इस व्रत को लेकर विष्णु पुराण में ऐसा वर्णन मिलता है कि जो व्रती व्रत के दौरान चावल का सेवन करता है वह पाप का भागी बनता है। वैसे भी एकादशी को चावल का सेवन निषिद्ध होता है,

2.शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने वाले को इस रात सोना नहीं चाहिए। रात्रि में भगवान विष्णु के नाम का भजन-कीर्तन करना उत्तम माना गया है। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। रात्रि भजन सदैव आनंदमयी होता है और श्री नारायण को अति प्रिय है, ज्यादा से ज्यादा महामंत्र का जाप किया जाए तो बहुत ही बढ़िया होता है,

3.अपरा एकादशी के दिन व्रती को पान नहीं खाना चाहिए। इस दिन पान खाना अशुभ माना गया है। पान खाने से मन में रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है। व्रत अर्थात त्याग इस दिन सात्विक ही रहना चाहिए इसीलिए ऐसा प्रावधान लिखा गया है,

4.एकादशी व्रत के दौरान क्रोध करना सर्वथा वर्जित माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के दौरान क्रोध करना एक प्रकार की मानसिक हिंसा है। इसलिए व्रत की अवधि में क्रोध नहीं करना चाहिए। वैसे भी क्रोध सभी पापो को जन्म देता है, इसलिए सदैव ही इससे बचना चाहिए,

5.अपरा एकादशी के दिन भूलकर भी दातुन से दांत साफ नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के दिन किसी भी पेड़ की टहनियों को तोड़ने से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं। ऐसा उन्ही के लिए है जो दातुन करते है, वैसे सधारण पेस्ट में भी नमक इत्यादि रहता है तो कुछ लोग इसे निषिद्ध मानते है,

वर्ष 2018 : एकादशी व्रत की तारीखें और इनके नाम , इस वर्ष क्योंकि पुरुषोत्तम मास है तो पूर्ण छब्बीस एकादशी होंगी इस वर्ष, जो लोग एकादशी व्रत करने में समर्थ नहीं है, वह केवल इन छब्बीस एकादशियो के नाम का कीर्तन भी करे तो उन्हें एकादशी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है, इसलिए सभी वैष्णवों को इनके नाम अवश्य उच्चारण करने चाहिए,

1. 12 जनवरी : षटतिला एकादशी
2. 27/28 जनवरी : जया/अजा एकादशी
3. 11 फरवरी : विजया एकादशी
4. 26 फरवरी : आमलकी एकादशी
5. 13 मार्च : पापमोचनी एकादशी
6. 27 मार्च : कामदा एकादशी
7. 12 अप्रैल : वरुथिनी एकादशी
8. 26 अप्रैल : मोहिनी एकादशी
9. 11 मई : अचला (अपरा) एकादशी
10. 25 मई पुरुषोत्तमी, कमला एकादशी
11. 10 जून : पुरुषोत्तमी, कमला एकादशी
12. 23/24 जून : निर्जला एकादशी
13. 9 जुलाई : योगिनी एकादशी
14. 23 जुलाई : देवशयनी एकादशी
15. 7 अगस्त : कामिका एकादशी
16. 21/22 अगस्त : पुत्रदा, पवित्रा एकादशी
17. 6 सितंबर : जया/अजा एकादशी
18. 20 सितंबर : पद्मा, जलझूलनी एकादशी
19. 5 अक्टूबर : इंदिरा एकादशी
20. 20 अक्टूबर : पापांकुशा एकादशी
21. 3 नवंबर : रंभा (रमा) एकादशी
22. 19 नवंबर : देवउठनी एकादशी
23. 3 दिसंबर : उत्पन्ना एकादशी
24. 18/19 दिसंबर : मोक्षदा एकादशी
25. 1 जनवरी : सफला एकादशी 
26 17  जनवरी:  पुत्रदा एकादशी 



गौड़ीय सम्प्रदाय में एकादशी का बहुत महत्व है और यह व्रत श्री राधारमण देव जू
को अतिशय प्रिय है, इसीलिए सभी वैष्णव इस व्रत को बहुत आत्मीयता और प्रेम भाव के साथ करते है, इस दिन प्रतिदिन के नियम से अधिक संख्या में महामंत्र का जाप प्रयासरत करना चाहिए और व्रत के साथ नामसंकीर्तन हो जाता है तो व्रत की महिमा अनंत गुना बढ़ जाती है इसलिए गाइये,


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अपरा (अचला) एकादशी व्रत कथा (ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी)
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