होलिकाष्टक : अर्थ,महत्व और होली विशेष उपाय (Holi 20th March 2019)

होलिकाष्टक होली + अष्टक अर्थात होली से आठ दिन पहले के समय को होलिकाष्टक कहते है, इस समय कुछ ऐसा विधान वर्णित है जिसके कारण कोई शुभ...

होलिकाष्टक


होली + अष्टक अर्थात होली से आठ दिन पहले के समय को होलिकाष्टक कहते है, इस समय कुछ ऐसा विधान वर्णित है जिसके कारण कोई शुभ कार्य इन दिनों में नहीं किये जाते है, आइये जानते है ,कौन-से कार्य इन दिनों में नहीं करने चाहिए? क्यों नहीं करने चाहिए? और कौन-सा ऐसा स्थान है जहाँ इन दिनों को अमांगलिक मानने वाले भी सब मंगल करते है?


होलिकाष्टक : जानते है होलिकाष्टक क्यों मनाये जाते है? क्यों अशुभ मन जाता है इनको? जैसाकि हम सब जानते है भगत प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु भगवान् विष्णु के विरोधी थे और प्रह्लाद जी परम् विष्णु भक्त, उनकी भक्ति उनके पिता को सहन नहीं हो पाती है, और वह उन्हें मारने के लिए विभिन्न षड्यंत्र करते है, होली से आठ दिन पहले यह कोशिश की जाती है सात दिनों तक लगातार कोई न कोई साजिश की जाती है प्रह्लाद जी को मारने की किन्तु भगवान् विष्णु की कृपा से वह बच जाते है, और आठवे दिन होलिका प्रह्लाद जी को मारने के लिए उन्हें गोदी में बिठाकर जलाना चाहती है लेकिन अग्नि  में खुद  ही  स्वाहा हो जाती है, नारायण भक्त प्रह्लाद बच जाते है, और उसी होली की राख  को उड़ा-उड़ा कर लोग बहुत प्रसन्न होते है तभी से धुलंडी का त्यौहार मनाया जाने लगा, क्योंकि भक्त प्रह्लाद को इन आठ दिनों में अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा इसलिए भक्त लोग इन दिनों को होलिकाष्टक के रूप  में पीड़ादायी और अशुभ मानते है,


20th मार्च को होलिका दहन किया जाएगा, आठ दिन पूर्व अर्थात 12 मार्च से होलाष्टक प्रारंभ हो जाएंगे। होलाष्टक के दौरान आठ दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं होंगे। क्यों शुभ कार्य निषेध कहे जाते है आइये जानते है इसका कारण:

होलाष्टक में अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्रोदशी को गुरू, त्रयोदशी को बुध, चतुदर्शी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वाभाव में रहते हैं। इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है, कई बार मनुष्य सही निर्णय नहीं ले पाता है और हानि की संभावना बढ़ जाती है। अतः ग्रहो की स्थिति जोकि हमारे मन मस्तिष्क पर बहुत प्रभाव डालती है और हमारे द्वारा किये जाने वाले कार्यो को प्रभावित करते है इस लिए  इन दिनों में कोई भी शुभ कार्य  करने को निषिद्ध कहा  गया  है,



होलाष्टक का महत्व और क्यों मनाई जाती है होली :

होलिका पूजन करने के लिए होली से 8 दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से पवित्र कर उसमें सूखे उपले (कण्डे) लकड़ी, घास व होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है। वहां पर होलाष्टक से लेकर होलिका दहन तक प्रतिदिन थोड़े-थोड़े लकड़ी और उपले डाले जाते हैं। होली को मनाने का एक कारण यह भी है की  भगवान शिव ने कामदेव को इसी तिथि में भस्म किया था। होली पूजन की शुरुआत होलिकाष्टक से होती है।  इस बार होलाष्टक 23 फरवरी से 1 मार्च तक रहेगा। इन आठ दिनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक के दिन होलिका दहन के लिए 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। होलिका के विषय में सब जानते है की वह हिरण्यकशिपु की बहन थी जो प्रह्लाद जी को भस्म करना चाहती थी, क्योंकि उसे अग्नि से न जलने का वरदान था kintu जब भगत प्रह्लाद को बचाकर भगववान नारायण ने होलिका को जला दिया तो सभी नगरवासी ख़ुशी से झूम उठे और उस जाली हुयी राख को रंगो की भांति उड़ने लगे और तभी से धुलंडी का त्यौहार मनाया जाता है, इस प्रकार होली बुराई पर अच्छे का प्रतीक त्यौहार भी है, आनंद और उल्लास का त्यौहार भी है,


यह कार्य नहीं करते होलाष्टक में:

२ मार्च को रंग (धुलेंडी) खेली जाएगी। पौराणिक एवं शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है। उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। होलाष्टक में 16 संस्कारों को करना पूर्णतः निषेद माना गया है। यहां तक की अंतिम संस्कार के कार्य को भी करने से पूर्व शांति कार्य किए जाते हैं। वहीं गृह प्रवेश, मुंडन, गृह निर्माण कार्य आदि भी प्रारंभ नहीं कराए जाते हैं।


होलिका की पूजा विधि :

होलिका दहन रात्रि में किया जाता है। लेकिन महिलाएं सामूहिक पूजन शाम को ही कर लेती हैं। होलिका दहन के लिए हर चैराहे व गली-मोहल्ले में गूलरी, कंडों व लकड़ियों से बड़ी-बड़ी होली सजाई जाती हैं। पूजन के लिए पहले गोबर और जल का चैक बनाया जाता है। इसके बाद एक सीधी लकड़ी के चारों ओर बड़कुला (गूलरी) की माला उसके चारों तरफ लगाते है। उन मालाओं के आस-पास गोबर से बनी हुई ढाल, तलवार, सूरज, चाँद और नारियल लगाते हैं। पूजा की थाली में फूल, रोली, मोली, जल, गुलाल, चावल, ढाल, तलवार, कच्चा सूत, नारियल गेंहू की बाली, गुड़ व छोटी छोटी बाटी बनाकर रखी जाती है। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर पूजन किया जाता हैं। कच्चा सूत होलिका के चारों तरफ लपेटते हैं पूजन के बाद ढाल, तलवार घर में रखते हैं। होलिका दहन के बाद महिलाएं लोटे से सात बार जल अर्घ देती हैं। नारियल चढ़ाती है और पुरुष बाली व बाटी सेंकते हैं। इन्हें सभी को बांटकर खाते है। यदि आप होली घर पर जलाते है तो बड़ी होली से अग्नि घर पर लाकर पूजा करें। पूजा के बाद सभी को गुलाल लगाए व बड़ो के पैर छूकर आशीष लें।


क्या करे की होली के दिन मनोकामना सिद्धि हो जाए :

तंत्र विज्ञान में होली को बहुत महत्व दिया जाता है और अनेक ऐसे छोटे छोटे उपाय बताये जाते है जिन्हे करने से मनोकामना पूर्ति हो जाती है ऐसे ही कुछ उपाय है:

1. मनचाहे वरदान के लिए होली के दिन हनुमान जी को पांच लाल पुष्प चढ़ाएं। मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। 
2. होली की सुबह बेलपत्र पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर अपनी मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर सच्चे मन से अर्पित करें।
3. किसी मंदिर में शंकर जी को पंचमेवा की खीर चढ़ाएं मनोकामना पूरी होगी।
4. व्यापार में लाभ के लिए होली के दिन गुलाल के एक खुले पैकेट में एक मोती शंख और चांदी का एक सिक्का      रखकर उसे नए लाल कपड़े में लाल मौली से बांधकर तिजोरी में रखें, व्यवसाय में लाभ होगा।
5. होली के अवसर पर एक एकाक्षी नारियल की पूजा करके लाल कपड़े में लपेट कर दुकान में या व्यापार स्थल      पर स्थापित करें। साथ ही स्फटिक का शुद्ध श्रीयंत्र रखें। उपाय निष्ठापूर्वक करें तो लाभ होगा।


 दरिद्रता नाश:  अगर आपके पास धन की कमी है,तो होली खेलने से पहले नहा - धोकर, " श्री सूक्त " का 21 बार पाठ " सिद्ध  स्फटिक श्री यंत्र " के सामने बैठकर करे,माँ लक्ष्मी के चरणों में गुलाल अर्पित करे,तत्पश्चात होली खेले,अगले साल होली आने से पहले आपकी धन संबंधी समस्या समाप्त हो जायेगी,शत्रुओ से मुक्ति: अगर आपके शत्रु बहुत हो गए है, उनसे आप बहुत परेशान है,तो होलिका दहन के समय अग्नि प्रज्वलित होते ही प्रत्येक शत्रु का नाम ले कर एक - एक " अभिमंत्रित गोमती चक्र " अग्नि में डालते जाये, शत्रुओ से आपको शीघ्र मुक्ति मिल जायेगी,शारीरिक कष्टों से मुक्ति: अगर आपके घर में कोई शारीरिक कष्टों से पीड़ित है,ओर उसको रोग छोड़ नहीं रहे है,तो 11 " अभिमंत्रित गोमती चक्र " बीमार ब्यक्ति के शरीर से 21 बार उसार कर होली की अग्नि में डाल दे,शारीरिक कष्टों से शीघ्र मुक्ति मिल जायेगी,




रंग वाले दिन क्या करें

होली के अवसर पर सतरंगी रंगों के साथ सात सुरों का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इस दिन रंगों से खेलते समय मन में खुशी, प्यार और उमंग छा जाते हैं। और अपने आप तन मन नृत्य करने को मचल जाता है। दुश्मनी को दोस्ती के रंग में रंगने वाला त्यौहार होली देश का एकमात्र ऐसा त्यौहार है, जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौहार्दपूर्ण तरीके से मानते हैं। इस त्यौहार में भाषा, जाति और धर्म का सभी दीवारें गिर जाती है, जिससे समाज को मानवता का अमूल्य संदेश मिलता है




आइये अब जानते है की जहाँ अशुभ भी शुभ में बदल जाते है, जहाँ दुःख भी  खुशियों में बदल जाते है, जो इस संसार में अनोखा स्थान है, कोई शुभ अशुभ नहीं होता केवल आनद और उल्लास ही होता है, जी हाँ आप सही समझ रहे है ऐसा स्थान केवल और केवल हमारे प्रिय श्री ठाकुर जी का स्थान श्री वृन्दावन धाम है, बृजभूमि है जहाँ चारो और आनंद और उल्लास बरसता है, जहाँ किसी की मृत्यु को भी दुःख से नहीं बल्कि महोत्सव के रूप में मनाया जाता है क्योंकि बृजभूमि में मृत्यु नहीं होती केवल श्री कृष्ण चरणों में शरणागति होती है, जोकि अति आनंद की बात है, फिर होईलकाष्टक आदि तो क्या अशुभ हो सकते है? 

कान्हा की नगरी मथुरा, वृंदावन में होलिकाष्टक के बाद से आठ दिन का होली महोत्सव शुरू है। लठामार होली, लड्डू होली, फूल होली,रंग होली न जाने कितनी प्रकार की होली होती है,होली को लेकर ब्रज में रास रंग के तरह तरह के प्रसंग हैं। आज बरसाना की लड्डू होली है। हास्ययुक्त गालियों से सुशोभित होली के गीत गाना और अबीर-गुलाल इधर-उधर फेंकना बड़ा ही अनोखा लगता है।चंदन, अगर, कस्तूरी, हल्दी व केसर के घोल से भरी डोलचियां लिए ब्रजांगनाएं एक साथ निकलती है। ऐसी होरी पुरे संसार में कही भी देखने को नहीं मिलती,यह अत्यंत दुर्लभ होरी होती है, देश ही नहीं विदेशो से अनेकानेक भगत इसका आनंद लेने श्री बृजधाम पहुँचते है, तो आइये हम सब मिलकर ऐसी ही होरी का आनन्द ले, 


मेरी ओर से भी आप सभी को होरी की हार्दिक शुभकामनाये, ढेरो खुशियाँ आपके जीवन में होरी के भिन्न भिन्न रंगो की तरह फ़ैल जाए,आशा है यह जानकारी आपको अच्छी लगेगी, और आप अपने मित्रो के साथ इसे शेयर करेंगे,

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