कृष्ण नगरी द्वारिका की गूँज: कृष्ण नगरी द्वारिका की गूँज अर्थात प्रभु के मंदिर की घंटियों की नाद, प्रभु की मधुर आवाज, कौन सी गूँज?, क...
कृष्ण नगरी द्वारिका की गूँज:
कृष्ण नगरी द्वारिका की गूँज अर्थात प्रभु के मंदिर की घंटियों की नाद, प्रभु की मधुर आवाज, कौन सी गूँज?, कौन सी द्वारिका? कौन से सागर में डूबती हुयी द्वारिका?
एक द्वारिका जो हज़ारो वर्षो पहले सागर की गोद में समा गयी थी? सुना है सागर के तट पर आज भी उस मंदिर की घंटियों की गूँज सुनाई देती है, मुझे भी उस स्वर-नाद का आनंद लेना है, मैं भी भटकते, घूमते-फिरते जा पहुंचा उस तट पर, लेकिन यह क्या? यहाँ तो कोई घंटियों की आवाज़ नहीं सुनाई देती, क्या करू, लौटने का मार्ग भी भूल गया हूँ? वही डेरा डाल कर बैठ गया, वही पर रहने लगा, धीरे-धीरे घंटियों वाली बात भी भूल गया, अब कोई चाह शेष ही नहीं रही, निर्वासित सा वही रहने लगा, ये क्या एकदिन मंदिर की घंटियों की गूँज चारो और फ़ैल गयी, मधुर प्रभु के घर का संगीत मेरे अंतर्मन को हर्षित करने लगा, उस संगीत को सुनकर मेरा मन चेत गया, और ऐसा चेता की आज तक चेतना में है, प्रभु प्रेम से जागृत है,
अर्थात ,उस भौतिक द्वारिका और उसकी गूँज नहीं, असली द्वारिका की गूँज, जो द्वारिका कही दूर नहीं, बल्कि हमारे हृदय रुपी सागर में डूबी हुयी, परमात्मा की आवाज है, जैसे सागर की लहरों को शोर आस-पास की या सागर की गहराई की आवाज़े सुनने नहीं देती, ऐसे ही हमारे मन के समुन्द्र में विचारो की अथाह लहरे हिलोरे लेती रहती है, कभी घर के विचार, कभी संसार-व्यपार के तो कही व्यर्थ के विचार, यदि हम भीतर की द्वारिका नगरी में बजती हुयी प्रभु के मंदिर की घंटिया सुनना चाहते है, तो बाहर के सब शोर शांत करने होंगे, अंतर्मन में गुंजित परमात्मा का आनंद गूँज तभी सुनाई देगा जब बाहर के सब स्वर शांत हो जाएंगे, अंतर्मन के स्वर तभी शांत होंगे जब कोई चाह शेष नहीं रहेगी, उस प्रभु से मिलन और उसकी नाद सुनने की वासना का भी त्याग करना होगा, निर्लिप्त, विचारशून्य अज्ञानी के जैसे, बालक के जैसे केवल अनंत की और ध्यान जैसे जैसे एकाग्रता होगी मंदिर की घंटिया बजने लगेगी, नाद से गुंजायमान सस्वर हम नाचने लगेंगे,
क्या तुम भी उस सागर के किनारे चलना चाहते हो? क्या तुम्हे भी परमात्मा के संगीत को सुनना है?
चलो ! स्वयं के भीतर चलो, स्वयं का हृदय ही वह सागर है,उसी की गहराइयों में परमात्मा के डूबे हुए मंदिर का खजाना है, ये ही वो क्षीर सागर है जहाँ नारायण विश्राम कर रहा है,लेकिन इस गहराइयों के स्वर-नाद का आनंद केवल वही ले सकता है, जो सब भांति से शांत और शून्य हो,
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