कुरुक्षेत्र कथा " संगति " कुरुक्षेत्र कथा में महाराज श्री जी ने अर्जुन और दुर्योधन का संवाद प्रस्तुत कि...
कुरुक्षेत्र कथा
"संगति"
इसी
संवाद के मध्य
महाराजश्री के श्री
मुख से एक
सूत्र का प्रतिपादन
हुआ, वह सूत्र
है 'संगति' संगति
सदैव महत्वपूर्ण होती
है, हर मनुष्य
के पीछे कोई
न कोई होता
है, लेकिन उसके
पीछे कौन है,
यह महत्वपूर्ण है,
क्योंकि दुरयोधन इसलिए दुर्बुद्धि
हुआ, दुराचारी और
कुटिल हुआ क्योंकि
उसके पीछे खड़ा
सख्श शकुनि था,
और यही फर्क
है संगति का
अर्जुन महान है,
धनुर्धारी है,विवेकी
है ग्यानी है,क्यों? क्योंकि उसके
पीछे स्वयं श्री
कृष्ण खड़े है,
मनुष्य
का संग उसके
व्यव्हार के रंग
दर्शाता है, यदि
कोई साधु भी
है और मयखाने
में रहता है
तो देखने वाले
उसे ढोंगी और
शराबी ही कहेंगे,क्योंकि मयखाने में
उसका संग शराबी
लोगो से ही
होगा, शराब के
ग्लास में दूध
को भी शराब
ही समझा जाता
है, अच्छे सुसंस्कारित
परिवार का बालक
भी यदि जुआरियो
की संग में
बैठा दिखेगा तो
जुआरी ही समझा
जायेगा, इसलिए सुखी जीवन
का एक सूत्र
संगति भी है,
कुल, मर्यादा
और विचारो के
अनुरूप ही संग
करना चाहिए अन्यथा
कुसंग का रंग
भले से भले
मानव को कुपंथ
की ओर अग्रसर
करके बुराइयों के
गर्त में धकेल
देगा,
इसलिए " बहुत
सावधान होकर अपना
संग बनाओ, सदैव
अच्छे लोगो की
संगति में रहो ",
" जय जय श्री राधारमण देव की "
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