सुखी गृहस्थी के दो सूत्र " संवाद " ' त्याग ओर सेवा ' ( कुरुक्षेत्र कथा के अंतिम दिवस से संकलित 2018) ...
सुखी
गृहस्थी के दो
सूत्र "संवाद" 'त्याग
ओर
सेवा'
(कुरुक्षेत्र कथा के
अंतिम दिवस से
संकलित 2018)
कुरुक्षेत्र
कथा के अंतिम
दिवस को महाराज
श्री ने सुखी
गृहस्थी के सूत्रों
का बहुत ही
सहज रूप से
अपनी ओजस्वी वाणी
में वर्णन किया,
क्योंकि आज की
कथा से पहले
दिवस भगवान् श्री
कृष्ण भी गृहस्थी
बन गए है,
उनका विवाह संपन्न
हो चूका है,
"धर्म गृहस्थी जीवन का
कदापि विरोधी नहीं
होता,बल्कि धर्मयुक्त
जीवन गृहस्थी को
सुखी बनाने में
सहायक होता है",
धर्म कभी यह
नहीं कहता की
गृहस्थी छोड़कर,वन चले
जाओ,बाबा बन
जाओ, बल्कि धर्म
यह सिखाता है,
की कैसे धर्मयुक्त
आचरण अपनाकर अपनी
गृहस्थी को आनंदित
ओर सुखमय बनाया
जा सकता है?
सुखी
जीवन में कई
बार कलह होती
है, अविश्वास, ईर्ष्या
ओर द्वेष उत्पन्न
हो जाते है
जिससे गृहस्थ जीवन
नष्ट होने लगता है,
महाराज श्री इसी
बात का सूत्र
बताते है की,
"गृहस्थी को सुखी
बनाने का एक
सूत्र 'संवाद' है",
संवाद
अर्थात वार्तालाप, बातचीत, विचारो
का आदान-प्रदान,
विचारो की
अभिव्यक्ति,आपस में
यदि विचारो का,
मानसिक भावनाओ का यदि
उचित प्रगटीकरण नहीं
होगा तो आपसी
कलह बढ़ता जाएगा,
दूरिया अधिक होती
जायेगी, ओर यदि
इन्ही बातो को
साँझा करने पर
एक दूसरे को
समझने का प्रयास
होगा तो कितनी
भी बड़ी समस्या
परिवार में हो
सुलझ जायेगी, किन्तु
संवाद का विलोप,
परिवार के विलाप
में बदल सकता
है, इसलिए अपने
रिश्तो को वक्त
दीजिये, उनकी भावनाओ
का ओर अपने
विचारो का आदान-प्रदान कीजिये,जिससे
आपका भी मानसिक
तनाव काम हो
जायेगा और अन्य
सदस्य भी हर
स्थिति को समझकर
हमारे सांझेदार बनेंगे,जब परिवार
में एकता होगी
तो मतभेद नहीं
होंगे, मतभेद नहीं होंगे
तो प्रेम होगा,
प्रेम होगा तो
सुख होगा, सुख
होगा तो शांति
होगी यही सुखी
जीवन का आधार
है,
आज
के युग में
परिवारों के मध्य
संवाद खतम हो
गया तो विवाद
बढ़ गए है,
विचारो के तालमेल
के अभाव से
जीवन में आनंद
का प्रभाव निकल
गया है, आपसी
विवाद से घर
के कोनो कोनो
में विषाद फ़ैल
गया है,
"यदि संवाद
नहीं होगा तो
छोटी से छोटी
बात गृहस्थी बिगड़
सकती है, किन्तु
संवाद से बड़ी
से बड़ी उलझनों
को सुलझाया जा
सकता है",
त्याग
और सेवा का
सूत्र: यहां महाराज
श्री जी ने
एक और महत्वपूर्ण
सूत्र का उल्लेख
किया," छोटे बड़ो
को बड़ा समझे,किन्तु बड़े भी
छोटो को छोटा
नहीं समझे", ध्यान
से सुनिए एक
बार फिर से
की छोटे बड़ो
को बड़ा समझे,
यह सभी जानते
है,किन्तु बड़े
छोटो को छोटा
न समझे यह
ध्यान देने की
बात है,
बड़ो
का मान-सम्मान,
सेवा,आज्ञापालन,यह
सब छोटो का
धरम है,यह
बात बिलकुल सही
है और सभी
छोटो को यह
समझना चाहिए,किन्तु
बड़ो का भी
फर्ज बनता है
की, वह छोटो
को छोटा ना
समझे,उनके विचारो
को सुने, समझे,और उनकी
भावनाओ को समझकर
उनसे व्यवहार करे,इससे घर
में सुख का
माहौल होगा,
" बड़ो में, त्याग
की भावना और छोटो
में बड़ो की सेवा
का भाव ही सुखी
गृहस्थी जीवन का सूत्र
है."
राम
जी भरत से
बड़े है जब
वो वन गए
तो उन्होंने त्याग
दिखाया जबकि भरत
जी ने उनकी
आज्ञापालन से उन्ही
की सेवा जानकर
अयोध्या को संभाला,
वन में राम
और लक्ष्मण है
जिसमे राम बड़े
है,वह त्यागी
है और लक्ष्मण
छोटे है और
सेवा करते है,
ऐसे ही अयोध्या
में भरत बड़े
है त्याग करते
है,शत्रुघ्न छोटे
होने के नाते
सेवा में संलग्न
रहते है, तभी
ऐसी विपरीत परस्थितियो
में भी अयोध्या
जी अयोध्या ही
है उसके संचालन
में कोई कमी
नहीं है, इसी
प्रकार हर घर
में बड़े त्याग
को स्वीकार करे
और छोटे निष्ठापूर्वक
सेवा अपनाये तो
हर घर अयोध्या
जी जैसा बन
सकता है,
बोलिये "श्री
राघवेंद्र सरकार की जय,राधारमण
देव की जय "
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