ये औरतें भी न ! दो मिनट की आरामदायक और बच्चों के पसंद की ज़ायकेदार मैगी को छोड़ किचन में गर्मी में तप कर हरी सब्ज़ियाँ बनाती फिरती ...
ये औरतें भी न !
दो मिनट की आरामदायक और बच्चों के पसंद की ज़ायकेदार मैगी को छोड़ किचन में गर्मी में तप कर हरी सब्ज़ियाँ बनाती फिरती हैं।
बच्चे मुँह बिचकाकर नाराज़गी दिखलाते हैं सो अलग — फिर भी बाज नहीं आतीं
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ये औरतें भी न,
ये औरतें भी न,
जब किसी बात पे दिल दुखे तो घर में अकेले में आँसुओं की झड़ी लगा देंगीं ।
लेकिन बाहर अपनी सहेलियों के सामने तो ऐसे मुस्कुरायेंगीं जैसे उनके जितना सुखी कोई नहीं।
🧖🏼♀
ये औरतें भी न
ये औरतें भी न
जब कभी लड़ लेंगी पति से तो सोच लेंगी अब मुझे तुमसे कोई मतलब नहीं।
लेकिन शाम में जब घर आने में पति महाशय को देर हो जाये तो घड़ी पे टक-टकी लगाए रहेगी।और बच्चों से बोलेंगी, "फोन कर के पापा से पूछो आये क्यों नहीं अभी तक?"
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अरे यार! ये औरतें भी न
अरे यार! ये औरतें भी न
तिनका तिनका जोड़कर अपने आशियाने को बनाती और सजाती हैं
चलती और ढलती रहतीं है सबके अनुसार।
चलती और ढलती रहतीं है सबके अनुसार।
सच में एकदम पागल हैं सोचतीं कुछ हैं और करतीं कुछ!
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क्यों करती हैं ये सब ? क्या स्वार्थ है इसके पीछे ?
क्यों करती हैं ये सब ? क्या स्वार्थ है इसके पीछे ?
मेरे भाई सिर्फ प्रेम स्नेह और फ़िक्र है परिवार की।
--राहुल शुक्ला
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