श्रीमदभगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 2 सञ्जय उवाच दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा। आचार्यमुपसङ्गम्य राज...
अध्याय 1 श्लोक 2
संजय ने कहा पाण्डवसैन्य की व्यूह रचना देखकर राजा दुर्योधन ने आचार्य द्रोण के पास जाकर ये वचन कहे।
पाण्डवों की सेना बड़ी ही सुचारुरूपसे और एक ही भाव से खड़ी थी, अर्थात् उनके सैनिकों में दो भाव नहीं थे, मतभेद नहीं था,उनके पक्ष में धर्म और भगवान श्रीकृष्ण थे। जिसके पक्ष में धर्म और भगवान् होते हैं उसका दूसरों पर बड़ा असर पड़ता है। इसलिये संख्या में कम होने पर भी पाण्डवों की सेना का तेज (प्रभाव) था और उसका दूसरों पर बड़ा असर पड़ता था। अतः पाण्डवसेना का दुर्योधनपर भी बड़ा असर पड़ा,
सभी अत्याचारी और तानाशाही प्रवृत्ति के लोगों की यही मनस्थिति होती है। भयभीत व स्वार्थबुद्धि से भरा ,भीतर से सहमा या डरा हुआ दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास जाकर नीतियुक्त गंभीर वचन बोलता है। यहां नीतियुक्त अर्थात दिखावे से पूरित मीठे, चिकने-चुपड़े वचन जिससे की द्रोणचार्य जी, जोकि उसके गुरु होने के साथ पांडवों के भी गुरु है,उनको अपने पक्ष में दृढ़तापूर्ण करने के लिए,और द्रोणाचार्य के मन में पाण्डवों के प्रति द्वेष पैदा हो जाय और वे हमारे ही पक्षमें रहते हुए ठीक तरह से युद्ध करें। जिससे हमारी विजय हो जाय हमारा स्वार्थ सिद्ध हो जाय।कोई कर्म करते हुये यदि हमारा उद्देश्य पाप और अन्याय से पूर्ण होता है तो अनेक साधनों से सुसम्पन्न होते हुए भी हमारे मन में निश्चय ही चिन्ता अशान्ति और विक्षेप उत्पन्न होते हैं।
“चाटुकार चक-चक चतुर,चालू चपल चरित्र ।
चाट-चाट-चप्पल चरण, करता रहे पवित्र ।।“
इस जगत में जब भी कोई अत्यधिक मीठी वाणी से परिपूर्ण आपके नजदीक आने की चेष्टा करें, आपकी प्रशंसा करें,तो समझ लेना, कोई स्वार्थसिद्धि या तुमसे अपना काम निकलवाने के उद्देश्य से आया है, सावधान हो जाना।चाटुकार से सदैव बचकर रहे, ये वही लोग होते है,जो अपना कार्य सिद्ध होने पर पीठ दिखाकर भाग जाते है,अपने मतलब के लिए जो आज आपके जूते चाट रहा है, क्या कल वह किसी दूसरे के नहीं चाटेगा?
द्रोणाचार्य के पास जाकर दुर्योधन क्या वचन बोला ? इसको आगेके श्लोकमें बताते हैं।
क्रमश:
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