गोबिंद चले आओ , गोपाल चले आओ .... .. आओ संगकीरतना की कड़ी में एक सूंदर भाव भजन सुनिए, आओ मिलकर गाये गोबिंद चले आओ, गोपाल चले आओ, ...
गोबिंद चले आओ , गोपाल चले आओ ......
आओ संगकीरतना की कड़ी में एक सूंदर भाव भजन सुनिए, आओ मिलकर गाये गोबिंद चले आओ, गोपाल चले आओ,
ऐसा भाव जो हमे गोबिंद के पास ले चले, हमारी आत्मा को श्याम के करीब और करीब ले जाए, नेत्र बंद कर श्याम की मोहनी मूर्ति के सामने केवल गोबिंद का ध्यान करे और बोले गोबिंद चले आओ गोपाल चले आओ, गाओ आओ मिल संगकीर्तन करे, संगकीर्तन इसका अर्थ ऐसे भी जाना जा सकता है कीर्तन जो स्वयं मोहन के संग, अर्थात हमारी पुकार श्याम तक पहुंचे, तदात्मकार हो जाए, लो से लौ मिल जाए, भाव से भाव मिल जाए, ताल, सुर लय सब कृष्णमय हो जाए तभी संगकीर्तन होता है,नेत्रों के सामने केवल मोहन की छबि, मोहन का रूप माधुर्य, वाणी से मोहन का नाम, हाथो से मोहन के ताली, पावो से मीरा जैसा नृत्य जो की सिर्फ मोहन के लिए है,दुनिया से दूर कुछ समय सब भुला दो की कौन देख रहा है, कोई क्या बोलता है, केवल जो भी क्रिया हो
केवल और केवल गोबिंद के लिए, तो आइये बोलिये गोबिंद चले आओ, गोपाल चले आओ ..........
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