श्री राधिकाजी यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवं I यथा क्षीरे च धावलयं यथाग्नौ दाहिका सति II यथा पृथिव्यां गन्धश्च तथ...
श्री राधिकाजी
यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवं I
यथा क्षीरे च धावलयं यथाग्नौ दाहिका सति II
यथा पृथिव्यां गन्धश्च तथाहं त्वयि संततम II
'जो तुम हो वही में हूँ, हम दोनों में किंचित भी भेद नहीं है, जैसे दूध में सफेदी, अग्नि में दाह की शक्ति,और पृथ्वी में गंध रहती है,उसी प्रकार मै सदा तुममे रहता हूँ I'
श्री राधिका जी और श्री कृष्ण एक हि है इसमें कोई संसय नहीं है, श्री राधिका जी प्रेममयी है और भगवान् श्री कृष्ण आनंदमय है, जहां आनंद है वही प्रेम है, और जहां प्रेम है वही आनंद है, आनन्दरसार का घनीभूत विग्रह श्री कृष्ण है और प्रेमरसार की घनीभूत विग्रह श्रीराधा जी है, इसलिए श्री राधाकृष्ण का बिछोह सम्भव ही नहीं है, न श्रीराधा के बिन श्रीकृष्ण रह सकते और न श्रीकृष्ण बिन श्रीराधा जी I
दिव्य प्रेमरसारविग्रह होने से ही श्रीराधाजी महाभावरूपा है और वह नित्यनिरन्तर आनन्दरसार रसराज अनंत ऐश्वर्य, अनंत सौंदर्य माधुर्य, लावन्यनिधि,सच्चिदानंद प्रियतम श्रीकृष्ण को आनंद प्रदान करती है, इन्ही आह्लादिनी शक्ति की लाखो अनुगामिनी शक्तियाँ मूर्तिमती होकर प्रतिक्षण सखी, मंजरी,सहचरी,और दुति होकर अनेक रूपों मै श्रीराधाकृष्ण की सेवा किया करती है, श्री राधाकृष्णजी को सुख पहुँचाना और उन्हें प्रसन्न करना ही इनका एकमात्र कार्य होता है, इन्हिका नाम श्रीगोपीजन है,
श्रीराधाजी के अनंत गुण है, उनके स्वरूपभूत भाव-समुद्र में अनंत विचित्र तरंगे उठती रहती है और उनको विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न लोगो ने देखाहै, जो उन्हें जिस भाव से देखता है,या देखना चाहता है,वे उसी भाव से जान सकते है, श्रीराधाजी अचिन्त्य महिमा में स्थित न तो विलासमयी रमणी है,न वे कविहृदय-प्रसूत कल्पना है,न उनमे किसी प्रकार का गुण-रूप,सौंदर्याभिमान ही है, वे नित्य सत्य एकमात्र अपने प्रियतम श्रीश्यामसुन्दर की सुखविधता है,वे इतनी त्यागमयी है,इतनी मधुर-स्वभाव हैकि अचिंत्यंत गुण-गण की अनंत होकर भी अपनेको प्रियतम श्रीकृष्ण की अपेक्षा से सदा सर्वसद्गुणहीन अनुभव करती है,वे परिपुरम प्रेमप्रतिमा होने पर भी अपने में सदैव प्रेम का अभाव देखती है,वे समस्त सौंदर्यकी एकमात्र निधि होने पर भी अपने को सौंदर्यरहित जानती है, सभी गुणोंकी खान होने पर भी श्रीराधिका अपने को गुणहीन मानती है, ऐसी परम् सरला स्वरूपिणी श्री राधिका जी है,
राधा राधा जपने से ही भव से बेडा पार है,
राधा करुणामयी राधा दयामयी राधा हमारी सरकार है,
राधा बोलो राधा सुन राधा कहने वालो से हमको प्यार है
राधा नाम जपले रे मन............................................
राधा चरण चापत मोहन राधा मोहन के दिल की तार है
मोर मुकुट से राह बुहारत मोहन अलबेला इनका प्यार है
राधा नाम जपले रे मन............................................
मोहन की धड़कन है राधा, मोहन ही राधा का प्यार है
दो देह एक आत्मा भेद करना इन दोनों में निराधार है
राधा नाम जपले रे मन............................................
राधा राधा जपने से ही राधागोबिंद को पाओगे
राधा कहने से दर दर की ठोकरे फिर नहीं खाओगे
राधा नाम जपले रे वृंदासखी .....
श्रीराधा की महिमा बताते हुए शास्त्र कहते हैं–‘रा’ शब्द के उच्चारणमात्र से ही माधव हृष्ट-पुष्ट हो जाते हैं और ‘धा’ शब्द का उच्चारण होने पर तो वे भक्त के पीछे दौड़ पड़ते हैं।
भगवान शिव द्वारा श्रीराधा के स्वरूप व महत्त्व का वर्णन:
भगवान शिव ने श्रीराधा का स्वरूप व महत्व बताते हुए नारदजी से कहा–’जैसे ब्रह्मस्वरूप श्रीकृष्ण प्रकृति से परे–अतीत हैं, वैसे ही श्रीराधा भी ब्रह्मस्वरूपा, निर्लिप्ता और प्रकृति से अतीत हैं। समय पर उनका आविर्भाव और तिरोभाव होता है। हरि की तरह वे भी अकृत्रिमा, नित्या और सत्यरूपा हैं।’
देवी कृष्णमयी प्रोक्ता राधिका परदेवता।सर्वलक्ष्मीस्वरूपा सा कृष्णाह्लादस्वरूपिणी।।
अर्थात्–श्रीराधा श्रीकृष्ण की आराधना में तन्मय होने के कारण ‘राधिका’ कहलाती हैं। श्रीकृष्णमयी होने से ही वे ‘परा देवता’ हैं। श्रीकृष्ण के आह्लाद का मूर्तिमान स्वरूप होने के कारण ‘ह्लादिनी शक्ति’ हैं। दुर्गा आदि तीनों देवियां उनकी कला का करोड़वां अंश हैं। श्रीराधा साक्षात् महालक्ष्मीरूप हैं और भगवान श्रीकृष्ण साक्षात् नारायण हैं। श्रीराधा दुर्गा हैं और श्रीकृष्ण रुद्र। श्रीकृष्ण इन्द्र हैं तो ये इन्द्राणी हैं। श्रीराधा सावित्री हैं तो श्रीकृष्ण ब्रह्रमा हैं। श्रीकृष्ण यमराज हैं ये उनकी पत्नी धूमोर्णा हैं। इन दोनों के बिना किसी वस्तु की सत्ता नहीं है। जड़-चेतनमय सारा संसार श्रीराधाकृष्ण का ही स्वरूप है। सभी कुछ इन दोनों की ही विभूति हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का कथन है–जो अज्ञानवश हम दोनों की निन्दा करते हैं, वे जब तक सूर्य और चन्द्रमा हैं तब तक घोर नरक में पकाये जाते हैं। जो एक बार हम दोनों की शरण में आ जाता है या अकेली श्रीराधा की अनन्यभाव से उपासना करता है, वह मुझे अवश्य प्राप्त होता है।
COMMENTS