भक्तमाल --(महात्म्य)--

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भक्तमाल --(महात्म्य)--

   भक्तमाल महात्म्य भगवान् के प्रिय भक्त ध्रुव जी  “ध्यान धरु माँ शारदे , वन्दौ प्रथम श्री विघ्नहरण गणेश , मेरे हृद...

भक्तमाल-(भक्तिमति माँ शबरी)
भक्तमाल-(गजेन्द्र हाथी की कथा)
भक्तमाल-(कर्मा बाई जी)

  भक्तमाल महात्म्य

भगवान् के प्रिय भक्त ध्रुव जी 

“ध्यान धरु माँ शारदे , वन्दौ प्रथम श्री विघ्नहरण गणेश ,
मेरे हृदय भक्ति भाव भरे, गौरी पति श्री महेश ,
कृष्ण रटे श्री राधा राधा, मै भी जपु श्री राधा,
श्याम राधा राधा गाते, मिट जाए भव-बाधा,”

भक्त, भक्ति ,भगवंत , गुरु चतुर नाम वपु एक ,
                ……इनके पद वंदन किये , नाशै विघ्न अनेक ,


भगतो के जीवन का आधार भगवानाम है, उनके जीवन की तार हमेशा प्रभु चरणों से जुडी रहती है,अर्थात कोई ऐसा क्षण नही जो प्रभु नाम की विस्मृति हो , ठीक उसी तरह प्रभु के मन में भी भक्तों के चरित्र का श्रवण व् मनन करने की आतुरता सदैव विद्यमान रहती है , इसमें कोई संदेह नही है की भगवान की कथा सदैव भक्तों को सुखानंद प्रदान करती है , किन्तु भक्तों की कथा स्वयं भगवान को आनंदित करती है , इसलिए यदि भगवान को खुस करना है तो भक्तों के चरित्रों को श्रवण और मनन करना चाहिए ,

 " भक्त, भक्ति ,भगवंत , गुरु चतुर नाम वपु एक "

इस पंक्ति में केवल और केवल कहने के लिए नाम चार है , किन्तु इनमे कोई भेद नही है, जैसे एक माला में कहने को चार तत्व विद्यमान है, मोती, धागा , फुंदना , और सुमेरु किन्तु माला एक ही है, इसी प्रकार भक्त माला के मोतियों के समान है , सुमेरु श्री गुरुदेव है , क्योंकि सद्गुरु का संग ही भक्तों को प्रभु से मिलाता है , भगवान स्वयं इसका फुंदना है क्योकि भगवान अनेकानेक लीलाये करते है , और बहुरंगी है ,माला का फुंदना भी कई रंगो का मिश्रण होता है ,चतुर्थ तत्व माला में सब को एक साथ पिरो कर रखने वाला धागा होता है , और भक्ति ही ऐसा सूत्र है जो भक्त, गुरु , और भगवान को एक करता है ,

       इसीलिए  भक्त + भक्ति + भगवंत + गुरु की समष्टि ही भक्तमाल की कथा है ,

भक्तमाल की कथा के चार महत्व पूर्ण अंग हे, भक्ति,भक्त, भगवंत ओर गुरु, जिस प्रकार एक  सरिर के विभिन्न अंग होते हे,किंतु सरीर एक ही होता हे, उसी प्रकार भक्त माल मे वर्णित ये चार अंग कहने को भिन्न हे, किंतु हे एक ही, चारो अंगो को मिलक्र् ही भक्तमाल की कथा पूर्ण होती हे, इन चारो मे कोई भेद नही हे,


ईश्वर सदैव भक्तों के वश में रहते है, इसलिए भक्तों के चरित्रों का पठन - पठन और गुण वर्णन स्वयं भगवान को आनंदित करता है, भक्तमाल ऐसे ही महान भक्तों की कथाओ को गूँथ कर बनायीं गयी माला है , जो यह वर्णित करती है कि कैसे अनेकानेक भक्तों ने भक्ति के मार्ग पर चल कर , कैसे कैसे त्याग , तप ,जप, और भावो को पोषित कर के भगवान को प्राप्त किया है ,इनकी कथाये केवल मनुष्यमात्र को बल्कि खुद प्रभु को भी रोमांचित कर देती है , सधारण मनुष्यो को भक्ति के मार्ग पर चलने को विवश कर देती है

कालांतर में प्रभु के बहुत  से भक्त हुए है, जिन्होंने अपनी भक्ति से भगवान को बार बार अवतार लेने को विवश कर दिया, श्री मद्भागवत में वर्णित सभी अवतारों का कारण भक्तों कि रक्षा और उनकी भक्ति को महिमामंडित करना है, जैसे ध्रुव कि निर्मल भक्ति के लिए परमपिता स्वयं उनके पिता बनकर आये, प्रहलाद कि रक्षा और भक्ति के लिए नरसिंघ अवतार लिया, शबरी जैसी भील जाती कि नारी जिसके प्रेमवश उसे राम बनकर दर्शन देते है, और झूठे फल भी खा लेते है, सुदामा कि भक्ति और मित्रता के लिए नगेय पाँव दौड़ पड़ते है, विदुरानी के द्वारा दिए गए फल के छिलके खा जाते है, मीरा के प्रेम में गिरधर गोपाल बन जाते है, बृज कि गोपियाँ जिनके प्रेमवश प्रभु नाचते है, तो कभी रस्सी से बंध जाते है, श्री राधा जी के प्रेम ने उन्हें एक रस एक वपु बना दिया अर्थात राधा मोहन और मोहन राधा में कोई भेद ही नही रहा.जटायु कि शरणागति के कारण उनके पुत्र बन जाते है, इस प्रकार अनंत भक्तों कि अनंत कथाये भक्तमाल में संग्रहित है, जिनके केवल श्रवणमात्र से ही हृदय भक्तिभाव से उद्वेलित होने लगता है


तन मन में एक स्फुरणा से प्रवाहित होने लगती है, कबीर,तुलसी, सूरदास, रैदास,एकनाथ,तुकाराम, रसखान, इत्यादि अनेकानेक संत भक्त इस संसार में हुए है, जिनकी भक्ति से प्रभु को परमानन्द प्राप्त हुआ है, इन भक्तों के चरित्रों के अध्ययन से या कहे रसास्वादन से इनकी भक्ति कि प्रमुखता का पता चलता है कि और ये पता लगता है कि कोण सी ऐसी रीती,भाव, विचार, या मनोस्थिति है जिसके अपनाने से सधारण मानव भी भक्त बन जाते है, प्रभु को प्राप्त कर लेते है,जब भी प्रभु अवतार लेते है,वह हर रूपं में अपने भक्तों का माँ बढ़ाते है, जैसेकि अर्जुन का उदहारण देखे तो भगवान उनके सारथि बन गए, जो प्रभु तीनो लोकों के स्वामी है, अर्जुन के इशारे पर रथ हांकते थे, यही नही इशारा भी अर्जुन को इशारा पाँव के अंगूठे से करना पड़ता था, तभी तो कहा भी है,  
                                       
                          सबसे ऊँची प्रेम सगाई .................सबसे ऊंची प्रेम सगाई

दुर्योधन के मेवा त्याग्यो, साग विदुर घर खाई, 
जूठे फल शबरी के खाये, बहु विधि स्वाद बताई
राजसूय यज्ञ युधिष्ठिर कीन्हा, तामे जूठ उठाई, 
प्रेम के बस पारथ रथ हांक्यो, भूल गये ठकुराई
ऐसी प्रीत बढ़ी वृन्दावन, गोपियन नाच नचाई,
प्रेम के बस नृप सेवा कीन्हीं, आप बने हरि नाई
सूर क्रूर एहि लायक नाहीं, केहि लगो करहुं बड़ाई


ऐसा ही नही है, बल्कि कई अवतार तो स्वयं भगवान स्वयं भगत बनने के लिए लेते है ताकि वह जान सके की भक्त को मेरी भक्ति में ऐसा कोण सा आनंद मिलता हे जो वह भगत बन जाते हे और मुझे भी अपने वश में कर लेते हे,  श्री सनकादि, कपिलदेव जी, मनु जी, इत्यादि!


भक्तो को भगवान के भजन में इतना आनंद आता हे कि भजन के आनंद के लिए भगवान को भी छोड़ देते है, किन्तु भजन में बाधा नही आने देते, भजन के लिए भक्त स्वार्थ - परमार्थ को भी छोड़ देते है, स्वयं श्री कृष्ण ने गोपी प्रेम का रसास्वादन करने के लिए गौरांग  महाप्रभु  के रूप में अवतार लिया, क्योंकि गोपियों का प्रेम इतना निर्मल था कि स्वयं श्रीकृष्ण आस्चर्यचकित थे कि इन गोपियों को कौनसा ऐसा आनंद मिल रहा है कि ये बावरियों कि भांति दिनरात निरन्तर मुझ में खोई रहती है, इन्हे कोई देह कि भान है, कोई लोक लाज है, केवल और केवल श्रीकृष्ण से प्रेम करती है, ऐसा तभी होता है जब भक्ति का आनंद इतना गहरा हो जाता है कि भक्त उस समय भगवान को पाने कि इच्छा भी नही करता और केवल भजन रुपी अमृत का निरन्तर पीते रहना चाहता है, 


“सभी कुछ चल रहा है और सभी कुछ चलता ही रहेगा लेकिन मन में यदि केवल कृष्णा का नाम चल जाए तो इस संसार में जो कुछ भी चल रहा है उसके चलने या चलने से कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा. रे मन केवल कृष्ण कृष्ण ही रट क्योकि उसके बाद जो कुछ भी चलेगा वही तेरे साथ चलेगा.”, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

                                                     क्रमशः ........



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Festival Special,6,Hanuman Ji,4,Happy Life,13,Inspiration,4,karmyog-geeta gyaan,8,Krishan Chaiynya Mahaprbhu,12,krishna consciousness,18,MOTIVATION,1,Navratri,2,Pundrik Ji Goswami,5,RAM MANDIR NIRMAAN,4,Relations,2,sangkirtna,22,Vrindavan Darshan,1,आनंद की ओर,3,इरशाद,2,गोपीगीत,7,तंत्र -मंत्र या विज्ञान,1,न भूतो न भविष्यति,1,भक्तमाल,10,रासलीला,1,श्याम-विरहणी,2,श्री कृष्ण बाललीला,2,श्रीराधा-माधव-चिंतन,7,साधना और सिद्धि,9,होली के पद,2,
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