पुरुषोत्तम मास : महात्म्य,क्या करे क्या न करे
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पुरुषोत्तम मास : महात्म्य,क्या करे क्या न करे

पुरुषोत्तम मास अधिक मास तीन वर्षो में एकबार आता है,यह मास कभी अति अपवित्र और पुण्य कर्मो के लिए त्याज्य होता था, किन्तु भगत्वत्स...


पुरुषोत्तम मास


अधिक मास तीन वर्षो में एकबार आता है,यह मास कभी अति अपवित्र और पुण्य कर्मो के लिए त्याज्य होता था, किन्तु भगत्वत्सल श्री कृष्ण ने जब से इसे अपना नाम पुरुषोत्तम दिया इस मास की महिमा ही अत्यंत अधिक हो गयी है, 
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2018 में दो ज्येष्ठ माह होंगे। इसकी विशेष बात यह रहेगी कि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से साल के 365 दिन में ही यह तिथियां भी शामिल होंगी। हिंदू पंचांग के हिसाब से तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है। तिथियों का क्षय होते होते तीसरे वर्ष एक माह बन जाता है। इस वजह से हर तीसरे वर्ष में अधिकमास होता है।

इस आने वाले वर्ष 2018 में 16 मई से 13 जून तक की अवधि अधिकमास की रहेगी। वैसे ज्येष्ठ माह इसके पूर्व 30 अप्रैल से प्रारंभ होकर 27 जून तक रहेगा परंतु कृष्ण और शुक्ल पक्ष के दिनों के मान से अधिकमास मई जून के मध्य भाग में रहेगा। मास की गणना शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक की गई है।

अधिक मास में सूर्य की संक्रान्ति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारण इसे ʹमलमासʹ (मलिन मास) कहा गया। स्वामीरहित होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। इससे लोग इसकी घोर निन्दा करने लगे।


तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः “मैं इसे सर्वोपरि – अपने तुल्य करता हूँ। सदगुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देने का सामार्थ्य आदि जितने गुण सम्पन्न हैं, उन सबको मैंने इस मास को सौंप दिया।

अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः।
तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।।

इन गुणों के कारण जिस प्रकार मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर ʹपुरुषोत्तमʹ नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ।”

भगवान कहते हैं- “इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण तथा देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। जो प्रमाद से इस मास को खाली बिता देते हैं,  उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें सन्देह नहीं।




सुगन्धित चंदन, दीप आदि से लक्ष्मीसहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती कर लें। इससे अनन्त फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और  पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-

देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।
गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेઽमिततेजसे।
नमोઽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।

ʹहे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव मुझ पर कृपा करके इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये। तुझ स्वयंभु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ आप मुझ पर कृपा करें।ʹ


पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

विधिवत् सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात्।

कुलं स्वकीयमुदधृत्य मामेवैष्ययत्यसंशयम्।।

प्रति तीसरे वर्ष में पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह निःसन्देह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँचकर मेरा सान्निध्य प्राप्त करता है।”

इस माह में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सत्कथा-श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किये जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और व्रती के सम्पूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। निष्काम भाव से किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यन्त श्रेष्ठ समय है। ʹदेवी भागवतʹ के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा सर्वोत्तम है। इससे तीर्थस्नानादि के समान फल प्राप्त होता है।


इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप-गुरुमंत्र जप का अधिक महत्त्व है। इस माह में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दुःख शोकों का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है।

अधिक मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना – यह भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और प्रसन्ताप्रद भी है। यह व्रत करने वाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं।

अधिक मास में वर्जित :

इस मास में सभी सकाम कर्म एवं सकाम व्रत वर्जित हैं। जैसे – कुएँ, बावली, तालाब और बाग आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा, नवविवाहित वधू का प्रवेश, देवताओं का स्थापन (देव प्रतिष्ठा), यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, नामकर्म, मकान बनाना, नये वस्त्र एवं अलंकार पहनना आदि।

अधिक मास में करने योग्य

प्राणघातक रोग आदि के निवृत्ति के लिए रूद्रजप आदि अनुष्ठान, दान व जप-कीर्तन आदि, पुत्रजन्म के कृत्य, पितृमरण के श्राद्धादि तथा गर्भाधान, पुंसवन जैसे संस्कार किये जा सकते हैं।


राधावल्लभ सम्प्रदाय में पुरूषोत्तम मास का महत्व और भी अधिक है, क्योंकि यह मास भगवान् कृष्ण को अति प्रिय है, जहां सभी शुभ कार्य वर्जित होते है वही श्री वृन्दावन धाम में श्री राधावल्लभ सम्प्रदाय में भगवान् के साथ वर्ष भर में आने वाले सभी त्यौहार जैसे दीपावली, होली,जैसे बड़े बड़े त्योहारों को यथा तिथि मनाने का प्रावधान रहता है, वर्ष भर के सभी त्योहारों का आनंद इसी मास में लिया जा सकता है, इसलिए वृन्दावन में इस मास की महिमा को और अधिक बढ़ा दिया है,


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