उपासक और आध्यात्मिकता में फर्क (महाराज श्री के प्रवचनो से संकलित) आचार्य श्री पुण्डरीक जी गोस्वामी उपासना और अध्यात्म या...
उपासक और आध्यात्मिकता
में फर्क
(महाराज श्री के प्रवचनो से संकलित)
उपासना और
अध्यात्म
या
धार्मिक
होने में बहुत
अंतर् होता है,
एक व्यक्ति जोकि
बहुत बड़ा उपासक
तो है,किन्तु
वह धार्मिक हो
ऐसा आवश्यक नहीं
है,उपासना एक पद्धति है, दिनचर्या
है, जैसे मंदिर
में जाना, जल
अर्पण करना, फूल
माला इत्यादि चढ़ाना,
दीपक जलाना, इत्यादि
यह सब क्रियाये
किसी के उपासक
होने को दर्शाती
है, किन्तु वह
धार्मिक व्यक्ति है, ऐसा
जरूरी नहीं है,
जैसे रावण का
ही उदहारण लिया
जाए, तो वह
एक बहुत बड़ा
शिव उपासक है,
उसके जैसी तपस्या
शायद ही किसी
ने की हो,
किन्तु वह धार्मिक
नहीं है,
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शिव उपासक रावण |
क्योंकि
धार्मिकता बहुत अलग
विषय है, धार्मिक
व्यक्ति उपासक न भी
हो किन्तु उसका
धार्मिक होना उसके
आचार-विचार और
वयवहार से स्वयं
दिखाई देगा, उपासना
क्रियाये है, किन्तु
धर्म आचरण है, धरम परमात्मा
का नैकट्य दर्शाता
है, धर्म भगवान
की अनुभूति सिखाता
है, उपासना मन
की कामनाओ और
स्वार्थ की पूर्ति
के लिए होती
है, किन्तु धर्म
परमार्थ के मार्ग
पर चलाता है,
धर्म परोपकार सिखाता
है,
महाराज
श्री उदाहरणार्थ किस्सा
सुनते है की
,"एक सेठ दूकान
में आया और
नौकर से पूछता
है दुकान सही
से जमा दिया
है ना, सभी
चावल, दाल और मसालों में जो
कुछ कंकड़ इत्यादि
मिश्रण करना है
सब ठीक से
हो गया हो,
तो अब में
निश्चिंत होकर मंदिर
जाकर आता हूँ,
यहां मंदिर जाना
पूजा अर्चन करना
सेठ जी को
उपासक तो सिद्ध
करता है, किन्तु
उसे किसी भी
दृष्टि से धार्मिक
नहीं कहा जा
सकता है,"
प्रिय
बंधुओ धर्म और
उपासना को सही
से समझना आवश्यक
है, साधक उपासना
ना भी करे
किन्तु धर्म जरूर
निभाए यही सच्चा
नियम है, अपने
आचरण की छोटी
से छोटी क्रियाओं
को परोपकार से
जोड़ते जाओ, धर्म
होता जायेगा, एक
व्यक्ति जो धार्मिक
है, वह उपासक
भी हो सकता
है, किन्तु जो
कोरा उपासक तो
है वह धार्मिक
हो ऐसा जरूरी
नहीं हो सकता,
इसलिए धार्मिक बनो,
उपासक ना भी
बनो तो कोई
हर्जा नहीं है,
सदैव राधारमण राधारमण
का सुमिरन करो,
दुसरो की भलाई
के लिए कर्म
करो, वयवहार सच्चा
बनाओ,उपासना अपने
आप हो जायेगी,
धर्म निभा लोगे
तो उपासना स्वतः
हो ही जायेगी,
"राम राघव, राम राघव, राम राघव, रक्ष माम,
कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, कृष्ण केशव, पाहि माम"
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