अनोखे गौर बन कर के श्री राधाकृष्ण आये है ये दो से एक बन कर के आये है.......... श्री गुरुपद रज बंदन चरणकमल उर ध्यान I माँ शारद...
अनोखे गौर बन कर के श्री राधाकृष्ण आये है
श्री गुरुपद रज बंदन चरणकमल उर ध्यान I
माँ शारदा कृपा ते बरनउ कृष्णचैतन्य भगवान II
रूप धरा कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भक्त प्यारे का I
बहाना अजब भगत भक्ति सुख अमृत पाने का II
श्री गुरु चरण सरोज रज मन मुकुर सुधारि
बरनउँ चैतन्य बिमल जसु जो दायक फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो शच्चि कुमार
भक्ति बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेष विकार
जय महाप्रभु ज्ञान गुण सागर,
भक्तिरस कलिकाल उजागर ॥१॥
कृष्ण भक्त चैतन्यकृष्ण नामा,
माता शची जगन्नाथमिश्र पितु नामा ॥२॥
कोमल चित स्वर्ण आभा शुभांगी,
लीला चरित्र मात-पितु भ्राता संगी ॥३॥
कंचन वर्ण अति सुन्दर वेषा,
कमल नयन सौम्य घुंघराले केशा ॥४॥
नवद्वीप धाम में आप विराजे
सकल मनोरथ भक्तो के साजे ॥५॥
कृष्ण चैतन्य नाम आनंदघन
भक्ति प्रताप रस अभिवर्धन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
भक्ति महारास पिबै को आतुर ॥७॥
नाम संकीर्तन सुनिबे को रसिया
भक्ति पुष्प श्री कृष्ण मनबसिया॥८॥
निमाई रूप धरि जगहि दिखावा
चैतन्य रूप धरि भवताप जरावा॥९॥
गौरांग रूप धरि माया सँहारे
आतप जन के भाग्य सवाँरे॥१०॥
लाय भक्ति रस जगजीव जियाए
श्री अद्वैताचार्य जी हरषि उर लाए॥११॥
गुरुवर कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय कृष्णहि सम नीमाई॥१२॥
बालरूप तुम्हरो मन भावै
लखि लखि मातपितु कंठ लगावै॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
लखै लीला नाना वेश रूप धरिके ॥१५॥
तुम उपकार अद्वैताचार्य कीन्हा
दर्श श्यामसुन्दररूप के दीन्हा॥१६॥
तुम्हरो मंत्र श्रीवास ने माना
कीन्हो संकीर्तन अति सुख जाना॥१७॥
प्रेम तप्त तुम नवद्वीप उदित भानू
नाम-संकीर्तन हरिभक्ति फल जानू॥१८॥
हरी बोल शब्द बोला मुख माही
तर गए पापी से पापी अचरज नाही॥१९॥
दुष्ट जन जगत के जेते
पार उतरे कृपा तुम्हरे ते॥२०॥
भ्राता विश्वरूप परम् ग्यानी तुम्हारे
मोक्ष हेतु तज संसार संन्यास पगधारे ॥२१॥
निताई सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम सारथि काहु को डरना॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै
जगाई-मधाई हाँक तै कापै॥२३॥
निताई गौर जब कृपा को आवै
दुष्टो का भी उद्धार करवावै ॥२४॥
नासै पाप हरे सब भवपीरा
जपत निरंतर महामंत्र हीरा ॥२५॥
पापकर्म तै कृष्णनाम छुडावै
भक्ति-प्रेम से जो हरिनाम को गावै ॥२६॥
आये शरण प्रताप भानु पूरी राजा
भक्ति हेतु राजकाज सकल वह त्यागा ॥२७॥
जो कोई मनोरथ भक्ति से लावै
तुमरि कृपा ते नाम-धन फल पावै॥२८॥
सकल जगत है परताप तुम्हारा
फैला जगत भक्ति प्रकाश उजियारा॥२९॥
वैष्णव जन के तुम रखवारे
करन उद्धार धराधाम पधारे ॥३०॥
कृष्ण सिद्धि नाम निधि के दाता
धन्य कुलवंश तुम्हारा धन्य जननी माता॥३१॥
कृष्ण रसायन तुम्हरे पासा
कृपा करो यदुपति के दासा॥३२॥
तुम्हरे भजन जन-जन को भावै
जनम जनम के कलुष मिटावै ॥३३॥
अंतकाल गौरकृष्ण चंद्र को पाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और भक्तजन चित्त ना धरई
गौरचंद्र सेई सर्व सुख करई॥३५॥
भवरोग कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै गौरचंद्र बलबीरा॥३६॥
जै जै जै चैतन्यकृष्ण गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
जो मनलाय पाठ कर कोई
पावे भक्तिरस महा सुख होई॥३८॥
जो यह पढ़े चैतन्य चालीसा
होय भक्त धरे पदरज शीशा॥३९॥
वृंदादास सदा हरि चेरा
कीजै महाप्रभु हृदय मह डेरा॥४०॥
दोहा
पावन चरित्र भक्तजन मनहरन, मंगल गौर चैतन्य रूप।
बलभद्र सुभद्र जगन्नाथ सहित, हृदय बसहु भक्त अनूप॥
॥ हरि बोल हरि बोल, बोल हरि बोल, मुकुंद माधव गोबिन्द बोल ॥
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