DIVINE LOVE STARTS FROM THE EYES OF SHREE KRSHNA
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DIVINE LOVE STARTS FROM THE EYES OF SHREE KRSHNA

प्यार एक ऐसा शब्द जो सुनने मात्र से ही एक हलकी मुस्कान हमारे चेहरे पर ला देता है,कितना मीठा है ये शब्द,इसका अनुभव कितना मिठास स...




प्यार एक ऐसा शब्द जो सुनने मात्र से ही एक हलकी मुस्कान हमारे चेहरे पर ला देता है,कितना मीठा है ये शब्द,इसका अनुभव कितना मिठास से भरा होता है यह तो वही चख सकता है जो प्यार करना जानता हो और जिसने प्यार को महसूस किया है, प्रेम.प्यार यह ऐसी अनुभूति है जो हमारी रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा है और अध्यात्म की दृष्टि से भी साधक के लिए रामबाण शस्त्र है प्रेम, प्रेम से ही सांसारिक रिश्तो को जीता जा सकता है और प्रेम से ही भगवान् को जीता जा सकता है, तय हमे करना है की कौन से मार्ग पर चलना है,


हीर राँझा, सोनी महिवाल, रोमियो जूलियट और भी बहुत से प्रेमी प्रेमिकाएँ है जिन्होंने प्रेम को महसूस किया, उसको जिया और समझा ऐसे ही आध्यात्म में श्री मीरा बाई जी, शबरी (भीलनी),ध्रुव,प्रह्लाद इत्यादि अनेकानेक उदहारण है प्रेम के जिन्होंने प्रेम के स्वाद को चखा है,


प्रेम होता कैसे है यह तो शायद शब्दों में नहीं बताया जा सकता क्योंकि यह एक अनुभूति है जो कब,कहाँ, कैसे और किससे हो जाए कहना मुश्किल है, जैसे कहा भी जाता पहली नज़र में प्यार......आज की चर्चा में भी आँखों का महत्व बतलाया जा रहा है की कैसे नज़रो से नज़रे मिलते ही प्रेम हो जाता है, दिल की गहराइयों में झाँकने का झरोखा होती है आँखें चाहे आध्यात्मिक जगत की बात हो या सांसारिक प्रेम हमेशा आँखों से शुरू होता है,


अँखियों के झरोखों से मैंने जो देखा साँवरे
तुम दूर नज़र आये,बड़ी दूर नज़र आये,
बंद करके झरोंखो को जरा बैठी जो सोचने 

मन में तुम ही मुस्काये, मन में तुम ही मुस्काये



ये विशाल नयन, जैसे नील गगन
पंछी की तरह खो जाऊ मैं


लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी .
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ..

प्रभु इस त्रिभुवन में किसके ऐसे नयन जो इतने विशाल और सभी को मोहित करने वाले है, ऐसे विशाल नयन तो मेरे बांके बिहारी,मेरे राम के हो सकते है जिन्हे देखकर कोई भी मोहित हो सकता है, इन नयनो की गहराइयों में खो सकता है, इन नयनो में अथाह अम्बर के समान विशालता है जिसमे किसी भी रसिक जन का मन एक पंछी की भांति उड़ सकता है अर्थात इन नयनो की सुंदरता में खो सकता है, तभी तो एकबार बिहारी जी से नयन लड़ने पर हम सब मन्त्रमोहित मुग्धवस्था में पहुंच जाते है कुछ भी ध्यान नहीं रहता और वह से हिलने को मन नहीं करता, सांसारिक जीव किसी भी हालत में इतना शोभनीय कदापि नहीं हो सकता केवल और केवल मेरे राम, मेरे कृष्ण ही ऐसी शोभा से युक्त हो सकते है,

सिरहाना जो हो तेरी बाहों का
अंगारों पे सो जाऊं मैं

             सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा .
             यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते परहिं भवकूपा ..

हे मेरे प्रभु ! इस संसार में कोई ऐसा अवलं नहीं जो बिना किसी स्वार्थके हो केवल आपकी शरण आपका सहारा ही ऐसा जो स्वार्थ से बाहर है, आपकी किरपा पूर्ण स्वार्थरहित होती है आपकी शरण में रहकर ही हम बिना किसी चिंता के किसी भी राह पर चल सकते है भक्ति की राह चाहे कितनी भी कठिन क्यों हो अगर आपका हस्त हमारे मस्तक पर है तो संसार की किसी भी कठिनाई से हम लड़ सकते है, जैसे मीरा बाई, प्रह्लाद, ध्रुव जैसे  भगतो को आपका सहारा मिला तो संसार के कितने भी दुःख अंगार बनकर उनकी राह में पद गए किन्तु वो उन्हें पार क्र गए केवल और केवल आपके वरदहस्त के सहारे से.......जो जीव आपकी शरण हो जाते है फिर भवसागर के अंधे कुआ में नहीं  पड़ते,

मेरा बैरागी मन डोल गया
देखी जो अदा तेरी मस्ताना
चन्दन सा बदन...

करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता .
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयौ प्रकट श्रीकंता ..

है गोबिंद जबसे आपकी  चंचल चितव को देखा और आपकी बाहों का सहारा मिला तो मेरा ये वैरागी मन रागी हो गया अर्थात मुझे संसार की और से तो वैराग हो गया किन्तु तुम्हरे प्रेम का राग लग गया अर्थात मेरा मन आपके लिए समर्पित हो गया आपके इस रूपमाधर्य में खो गया है, आप करुणामयी है और हम जैसे भक्तो के लिए ही अपना ऐसा रूप धारण करते हो जो हमे संसार सागर के झूठे प्रपंचो से बचाता है...
हे परमप्रिय मनमोहन केवल और केवल आपका शरीर ही चंदन के जैसा शीतल और महकने वाला है वरना हम सांसारिक जीवों का शरीर तो मलमूत्र हाड मांस और रक्त मज़्ज़ा से परिपूर्ण सदैव निंदनीय है, किसी भी सूरत में मोह के लायक नहीं है



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DIVINE LOVE: DIVINE LOVE STARTS FROM THE EYES OF SHREE KRSHNA
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