हनुमान चालीसा : मनोरथसिद्धि विधि
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हनुमान चालीसा : मनोरथसिद्धि विधि

हनुमान चालीसा : मनोरथसिद्धि विधि   मेरे शीर्षक का अभिप्राय यह है की श्री हनुमान चालीसा जी की सिद्धि कैसे की जाए या अपनी मनोकामन...

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हनुमान चालीसा : मनोरथसिद्धि विधि  



मेरे शीर्षक का अभिप्राय यह है की श्री हनुमान चालीसा जी की सिद्धि कैसे की जाए या अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए हनुमान चालीसा को कैसे पाठ किया जाए? यह कोई अंधविश्वास की बात नहीं है न ही कोई अंध साधना का विषय, हम सब सकाम साधना करते है, गृहस्थी धर्म निभाने के लिए मानसिक,शारीरिक और भौतिक क्षमता की अभिवृद्धि आवश्यक है और उसके लिए आस्था विश्वास की, हनुमान चालीसा एक ऐसा उपाय है जिस पर सभी को भरोसा है और संकट के समय बाबा की ही याद आती है, संकट ते हनुमान छुडावे ऐसा भी लिखा है, तो आइये जानते है कैसे अपनी मनोरथ सिद्धि करे, हनुमान चालीसा के द्वारा,आशा है आपको बिना किसी संदेह के यह लेख आपको पसंद आएगा और आप दुसरो को भी इसे पढ़कर उपयोग करने के लिए शेयर करेंगे.....जय श्री राम 


आज तक हम लोग हनुमान चालीसा तो बहुत बार पढ़ चुके है, प्राय हम सभी को कंठस्थ भी है यह पाठ, किन्तु इसमें शामिल शब्दों का गहन अर्थ समझना भी आवश्यक है, जिससे की जब हम हनुमान चालीसा का पाठ करे तो उसका महत्व हमारे दिमाग में हो और वह किया हुआ पाठ सिद्ध होता जाए, या दूसरे शब्दों में कहे तो श्री हनुमान चालीसा पाठ सिद्ध करने के लिए उसके भीतर निहित गहन ज्ञान और अर्थ की कुंजियों को खोलना है,इसी श्रंखला में अवस्थित होकर आज मैं प्रभु कृपा से कुछ तथ्य उल्लेखित करने का प्रयास कर रहा हूँ, प्रत्येक तथ्य गूढ़ ज्ञान से निहित और हमारे जीवन को बदलने वाला होगा, जो भी पाठ आज तक हमने किये है श्री हनुमान चालीसा के और इन तथ्यों को समझकर जो अब पाठ करेंगे उनका अंतर् आप स्वयं अनुभव कर लेंगे, आइये चलते है एक नवीन पद्धति से श्री हनुमान चालीसा के पाठ की ओर...
                                                   जय श्री रामजी की  जय श्री हनुमान जी की 

                                                                            दोहा
श्री  गुरु  चरण  सरोज -रज   निज  मनु  मुकुरु  सुधारि 

बरनउँ  रघुबर   बिमल  जसु जो  दायकु  फल चारि 

सर्वप्रथम इसी दोहे की बात करते है,क्योंकि गुरु कृपा से ही ज्ञान का उद्गम होता है, इसी लिए गुरु चरण रज को धारण करने की बात कही गयी है,गुरु के आश्रय से सब काम  सिद्ध होते है,और  उन्ही गुरु को प्रणाम कर श्री रामचंद्र जी  के गुणों का वर्णन तुलसी दास जी  करने को कह रहे है, 

बुद्धि -हीन  तनु  जानिके  सुमिरौ  पवन  कुमार 

बल-बुद्धि  बिद्या  देहू  मोही  हरहु  कलेश  विकार 

पवनपुत्र मैं अज्ञानी हूँ, मुझमे बुद्धि नहीं है इसलिए मैं आपके आश्रय होकर आपकी शरणगत होकर यह सब कह रहा हूँ आप बल बुद्धि,विद्या  के देने  वाले है,आप मुझ पर कृपा कीजिये और मेरे सकल दुखो का निवारण कीजिये 

संकल्प करना, प्रारम्भ में इन्ही दोहे का पाठ करते हुए:


जैसे तुलसीदास  जी हनुमान जी के आश्रित हो गए है, हमे चाहिए की जब भी श्री हनुमान चालीसा का पाठ करे तो उन्ही के आश्रित होकर प्रार्थना करनी चाहिए की हे हनुमान जी ! आप बल बुद्धि और ज्ञान के भण्डार है हम  अज्ञानी बालक  आपसे  विनती  कर रहे है की इस श्री हनुमान चालीसा के पाठ से हमारे सभी भय हर लीजिये और हमारे सभी दुःख कलेश और विकार  मिटा  दीजिये अर्थात दैहिक दैविक,भौतिक सभी संताप हर लीजिये,

॥चौपाई॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी । कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

इन सात चौपाइयां में सर्वप्रथम हनुमान जी की वंदना की गयी हे की, हे हनुमान जी! आप सभी प्रकार के गुणों से युक्त और ज्ञान के सागर हो, आप अपने ज्ञान और बल बुद्धि से तीनो लोको में प्रकाशित हो रहे हे, आप श्री राम जी के दूत और माता अंजनी के लाल ,पिता पवन देव के पुत्र हो,आप दुर्बुद्धि का नाश कर सुमति प्रदान करने वाले हो,आपका वर्ण अर्थात रूप स्वर्ण के समान कान्तियुक्त हैं, आप कुण्डल धारी हें  हाथो में वज्र लिए हैं,और राम नाम की पताका सदैव अपने पास लहराते हैं,आप भगवान् शंकर के अवतार और केसरीनंदन  हैं,,आपका प्रताप चारो दिशाओ में वंदनीय हैं,परम रामभक्त हैं और सदैव उनके कार्य सिद्ध करने वाले हैं, 

इस प्रकार ध्यान के द्वारा इन सातो चौपाइयों से श्री हनुमान जी का स्तवन करना चाहिए और पुष्प,गंध और अक्षत अर्पण करने चाहिए 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥

अब बारी हैं महासंकल्प द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमान जी से प्रार्थना करना, उसके लिए उपरोक्त छह चौपाइयों से बेहतर और कोई नहीं हैं,जानते हैं इनका महत्व और उपयोग, जैसे की सब जानते हैं श्री हनुमान जी को प्रभु श्री रामजी का गुणगान और रामनाम बहुत आनंद प्रदान करता हैं,और जब कोई प्रसन्न होता हैं तो वह हमेशा आशीर्वाद देता हैं,तो हनुमान जी के सामने रामगुणगान करना चाहिए, 

हनुमान जी के हृदय में रामजी लखन जी और माता जानकी जी का निवास हैं,हनुमान जी ने माँ जानकी जी को दारुण कष्ट से निवारा हैं,भयानक अग्नि से लंका का दहन किया हैं,लखनलाल जी को संजीवनी लाकर जीवन दान दिया है, ये सब कार्य दुर्गम और कठिन थे किन्तुी श्री राम जी के प्रताप से हनुमान जी ने स्वयं श्री राम जी के कष्ट निवारण किये हैं,और श्री राम जी ने भी इन सब कृत्यों के  लिए सदैव आपकी प्रसंशा अपने श्रीमुख से की हैं, आपके प्रताप बल और बुद्धि सहस को देखकर श्री राम जी आपको भरत जैसा भाई मानते हैं,और सहर्ष आपके गुणों का वर्णन करते हुए अपने हृदय से लगते हैं,

इस प्रकार हनुमानजी को प्रार्थना करनी चाहिए की जब श्री राम जी माता जानकी और लखनलाल जी के कष्टों का आपने हरण कर लिया तो हम भी आपकी संतान हैं, क्या आपके लिए हमारे किसी भी कष्ट का हरण करना कठिन हो सकता हैं? कतई नहीं , इसलिए आप हमारे कष्ट का निवारण कीजिये,ऐसी प्रार्थना करते हुए एक सूखा नारियल लाल वस्त्र से आच्छादित श्री हनुमान जी को समर्पित कीजिये, इसका अर्थ यह हैं की हे हनुमान जी ! हमने अपने सभी कष्ट आपको समर्पित कर दिए हे और आपकी शरण में हे, 




सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥

जब हम बाबा जी की शरण में हैं, तो उनके चरणों में बैठकर प्रार्थना करनी हैं की हे बाबा जी ! आपका प्रताप इतना अधिक हैं की कोई भी विद्वान उनका वर्णन नहीं कर सकता,सभी याम,कुबेर,दसो दिशाओ के देव भी असमर्थ हैं,तो हम बालक आपके गुणों का वर्णन कैसे कर सकने में समर्थ हो सकते हैं,आपने बड़े बड़े कार्य किये हैं, जैसे सुग्रीव को उनका राज्य वापिस दिलवाया श्री राम जी से मित्रता करवाकर, विभीषण को लंका से मुक्त करवाकर उसी का राजा बनवा दिया,सहस्त्रो योजन दुरी पर जाकर सूर्य जैसे अग्नि गोले को सेब फल समझ कर निगल गए,ऐसा प्रताप और किसी का नहीं हैं इस जगत में,और माता जानकी की सुद्धि लाने के लिए विकराल सागर लांघ गए,ऐसा और कौन करने में समर्थ था? इस संसार के जितने भी दुर्गम अर्थात कठिनतम काज हैं वह सब सुगम हो जाते हैं आपकी कृपा और प्रताप से,

मेरे भी कष्ट असहनीय  हो गए हैं बाबा, अब आपकी शरण में हूँ और आप ही मेरे सभी बिगड़े कार्य सुधार कर दोगे ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास हैं, कुछ पुष्प और अक्षत समर्पित कीजिये बाबा के चरणों में, ऐसा केवल भाव समर्पण के लिए किया जाता हैं, कोई अंधविश्वास या कर्मकांड का बंधन नहीं हैं,





राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥

अब जब सरनागत हो गए बाबा की तो पूर्ण समर्पण करना चाहिए, पूर्ण विश्वास से हनुमान जी को अपना सर्वस्व समर्पण करना हैं,जैसे की उपरोक्त चौपाइयों में वर्णन हैं, हे बाबा जी ! आप सदैव श्री राम जी के पास रहते हे, और उनकी आज्ञा के बिना आराम भी नहीं करते, ऐसे ही हम भी आपके द्वार पर आये हैं और पूर्ण रूप से आपके शरण में  हैं,क्योंकि जो आपकी शरण में आ जाते हैं,तो कोई भी दुःख नहीं ता सकता और वह पूर्ण रूप से सुखी  हो जाता हैं,आपका तेज  इतना हैं की तीनो लोको में कोई नहीं आपका सामना कर सकता, आपके नाम सुनने से भूत-पिसाच इत्यादि सब भाग जाते हैं,आप की किरपा और नाम मात्र से सभी रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं,हम निरंतर आपका नाम सुमिरन करते हैं,आप हमारे सब बंधन काट दीजिये और कष्टों का निवारण कर दीजिये, हैं बाबा मैं आपके द्वारे पड़ा हूँ, आप मेरी जीवन डोरी सम्भालिये, मैं मन , वचन और कर्म अर्थात पूर्ण रूप से आपकी शरण मैं हूँ,

ऐसा अपनी दोनों भुजाओ को उठाकर प्रार्थना करनी चाहिए, क्योंकि पूर्ण समर्पण के लिए अपनी दोनों भुजाये उठाने से होता हैं, और फिर दंडवत प्रणाम करना चाहिए,


सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥


हे बाबा जी ! श्री राम जी हमारे राजा हैं,स्वामी हैं, किन्तु आप ने उनके भी सभी काज बनाये हैं, और जो भी कोई इच्छा होती हैं आप पूर्ण करने में समर्थ हैं, कोई भी मनोरथ ऐसी नहीं हैं जिसे आप पूर्ण नहीं कर सकते, कोई भी युग ऐसा नहीं हैं जिसमे आप नहीं होते, आपकी कीर्ति  हर युग में होती रही  हैं, आज कलियुग में आप ही ऐसे देव हैं जो साक्षात् रूप से विद्यमान हैं,और हम जैसो के कष्टों का निवारण कर देते हो, ऐसा हमारा विश्वास हैं, आप सभी के रक्षक हैं,साधु-संत,और हम जैसे बालको के,और आप बुरी शक्तियों का नाश कर देते हो,

एक साबुत सुपारी और अक्षत के साथ ऐसी भावना हनुमान जी के चरणों  में समर्पित करना चाहिए,

अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥

अब क्योंकि सकाम अनुष्ठान कर रहे हैं तो हनुमान जी जोकि अष्ट सिद्धि और नव निधि देने वाले हैं उनसे हम सुख इत्यादि के लिए धन,सम्पदा और सुखो की कामना करे तो गलत नहीं हैं,क्योंकि संतान अपने पिता से कुछ मांगे तो गलत कैसे हो सकता हैं? किन्तु संतान को भी अपना फर्ज निभाना होता हैं, इसलिए बालक बनकर बाबा को समर्पित हो जाओ और बाबा पिता बनकर रक्षा करेंगे और मनोकामना पूर्ण करेंगे, क्योंकि बाबा के भजन से तो स्वयं राघवेंद्र सरकार रीझ जाते हैं, और भुक्ति-मुक्ति सब कुछ प्रदान कर देते हैं,फिर संसार के सुख और कष्ट तो बहुत ही छोटी बात हैं,बस श्री हनुमान जी का सुमिरन मात्र कीजिये जिससे सब कष्ट और पीड़ा नष्ट हो जायेगी,




बाबा हम आपसे अपने सकल कष्ट निवारण की प्रार्थना करते हैं और इस संसार में जीवन के लिए आवश्यक भौतिक सुख साधन की कामना करते हैं,आपको सिंदूर और चमेली तेल का लेपन करते हैं,साथ ही जनेऊ अर्पण कर रहे हैं, यह केवल हमारा भाव समर्पण हैं वर्ण हम आपको क्या चढ़ा सकते हैं, हम तो स्वयं आपसे मांगने  की इच्छा रखते  हैं, किन्तु भाव समर्पण के लिए ऐसा कर रहे हैं, आप हम पर प्रसन्न हो जाइये, अपनी किरपा का वरद हस्त हमारे शीश पर रख दीजिये,ऐसा भाव करके सिंदूर और तेल जनेऊ बाबा के चरणों में अर्पित कीजिये,

जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥

हें बाबा जी ! जैसे गुरु अपने शिष्य का कल्याण करते हुए उसकी अयोग्यता या योग्यता नहीं देखते बल्कि कल्याण कर देते हें, आप भी अब गुरु के जैसे हमारा कल्याण कीजिये आपकी जय जय जय हो, सत यानी सौ बार अर्थात एकमाला हनुमान चालिसा की जो कर लेता हें,उसके सब भाव बंधन कट जाते हें,हनुमान चालीसा जी के पाठ से सकल मनोरथ पूर्ण हो जाते हें,इसी की कृपा से राम लक्ष्मण और जानकी के साथ हनुमान जी हमारे हृदय में निवास कर सकते हें,




अब इन चौपाइयों के साथ गुरु दक्षिणा देने की बारी हें, क्योंकि धन दौलत तो हम स्वयं मांग रहे हें तो क्या दे सकते हें दक्षिणा में?  राम नाम दान  अर्थात 

"श्री राम जय राम जय जय राम , जानकीवल्ल्भ जय जय सीताराम, 
लखन शत्रुघ्न भरत भाई अभिराम,  जय परम् पावन सरयू जय अवधपुरी धाम"   

 इसी नाम धुनि की दक्षिणा से हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हें,इससे सरल और किफायती हनुमान चालीसा सिद्धि का कोई और उपाय नहीं हें ऐसा एक बार करे और फिर सौ बार हनुमान चालीसा का जाप करे तो कोई भी सिद्धि को रोक  नहीं सकता, बस जरुरत हें, आस-विश्वास,भक्ति-श्रद्धा,और दृढ संकल्प की, किसी भी अच्छे और सही कार्य का सुबह मुहूर्त नहीं होता, जब भी दृढ निस्चय मन में धारण करोगे इसे करने का वही समय सही हें, क्योंकि सही संकल्प भी सही समय के होने से होता हें, जय श्री राम  

॥दोहा॥

पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥



*घी का दीपक और प्रशाद लगाना न भूले,*
अंत में यही प्रार्थना हें हें हनुमान जी आप सदा मंगल करने वाले मंगल मूर्ति रूप हें,सदा कष्ट को हरने वाले हें, आप सदा श्री रामजी माता जानकी और लखन लाल सहित हमारे हृदय में निवास कीजिये अर्थात अपनी निश्छल भक्ति प्रदान कीजिये, 

जय श्री राम







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