यमुनेस्तुति - अष्टपदी जय जय श्री यमुने श्यामा तरंगिनि I जयति जयति श्री केशव संगिणी II (१) हे यमुना जी ! आपकी ज...
यमुनेस्तुति - अष्टपदी
जय जय श्री यमुने श्यामा तरंगिनि I
जयति जयति श्री केशव संगिणी II (१)
हे यमुना जी ! आपकी जय हो आप श्री कृष्ण के जैसे श्यामवर्ण हो, और सदैव श्री कृष्ण और उनकी लीलाओ की संगिनी हो आपकी जय जय हो.
प्रिय प्रिया तुम श्याम रंग - रंगिणि I
प्रगटि कलिकाल कलुषविध्वंषिनी II (२)
आप श्रीप्रियाजू की भी प्रिय और श्रीश्याम जी के रंग में रंगी हुयी हो , इस कलियुग में आपका अवतरण सकल क्लेशो का विध्वंश करने हेतु हुआ हे.
तुम जगतारिणी तुम दुःख हारिणि I
तुम हरिप्रिया रसरास सहभागिनी II (३)
आप जगत के जीवो को इस संसार सागर से पार करनेवाली और सकल दुःख हार्न करने वाली हो, आप श्री हरी की परमप्रिय और उनके रास-विलास की सदा सहभागिनी रहती हो,
तुम मुक्ति देय यम भवभय टारिणी I
जगत वंदिनी वृन्दावन विहारिणी II (४)
आप सभी जीवमात्र को मुक्ति देनेवाली,भवसागर के दुःख ,शोक और भी नाश करने वाली हो, सम्पूर्ण जगत के चराचर जीवो द्वारा वन्दित और श्रीवृन्दावन धाम में विहार करनेवाली हो,
हंससुता तुम सदा प्रेमपथ गामिनी I
तुम अमृत तुम हरिरस प्रवाहिनी II (५)
हे हंससुता ! आप सदैव प्रेमपथ गामिनी अर्थात श्रीराधामाधव के प्रेम के पथ पर अग्रसर करनेवाली हो, तुम अमृतस्वरूपा और श्री हरिप्रेमरस का प्रवाह करनेवाली हो,
तुम सदा हरिचरण रति प्रदायिनी I
नीर अमिय सम तुम अति पावनि II (६)
हे यमुने महारानी ! आप सदा सदा अपने भक्तो को श्रीहरिचरणो में प्रेम प्रदान करती हो,आपका जल अमृत के समान हे, हरिचरणो से स्पर्शित आप परमपावनी हो,
तुम अति पवित्र परम् सुखदायिनी I
तुम सदा कृपामयी सदा वरदायिनी II (७)
हे यमुने जी ! आप के समान कोई पवित्र नहीं हे,आप सदैव परम् सुखो को देनेवाली हैं, आप सदा भक्तो पर कृपा करती हो और उन्हें हरिभक्ति का वरदान प्रदान करती हो,
करहु कृपा देहु वर (वृंदासखी) हरिभक्ति पावनि I
अंतसमय निजजल मुख बृजरज सुहावनी II (८)
हे यमुने जी ! यदि आप मुझ से प्रसन्न हे तो अपनी इस दासी वृंदासखी को श्रीराधामाधव की पावन भक्ति,चरणरति का वरदान दो,और जब मेरा अन्तसमय आ जाए तो आपका अमृततुल्य पावन जल मेरे मुख में हो,और बृज-रज चंदन की भाँती मेरे मस्तक पर विराजमान हो,और मेरी मति श्रीराधामाधव के चरणों में लगी हो,
(वृंदासखी)
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