हे मोहन ! मेरे दिल की प्रार्थना (वृंदासखी ) भाव का भूखा हूँ मैं तो भाव ही तो सार है, भाव से जो कोई भजे तो भव से बेडा पार है, भ...
हे मोहन ! मेरे दिल की प्रार्थना (वृंदासखी )
भाव का भूखा हूँ मैं तो भाव ही तो सार है,
भाव से जो कोई भजे तो भव से बेडा पार है,
भक्तो के भाव को भगवान् अवश्य सुनते है, भक्त प्रह्लाद ने पुकारा खम्बा फाड़कर आ गए, ध्रुव ने पुकारा पिता बनकर आ गए, द्रोपदी ने पुकारा चिर बनके आ गए, गज, गणिका, अजामिल ने पुकारा नारायण बनकर आ गए, मीरा बाई जी ने पुकारा गिरधर गोपाल बनकर आ गए, सब भावो का खेल है,
किस घड़ी कौन सा भाव काम कर जाए नहीं पता लगता, लकिन भाव काम तभी करेगा जब भावो में रहेंगे, तुलसी बाबा ने भी रामचरितमानस में लिखा है
'भाय कुभाय अनख आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ ।।'
अच्छे भाव से, बुरे भाव (वैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है । अर्थात भगवान् नाम हमेशा तारणहार है, इसलिए किसी भी रूप में भगवन्नाम जप करते रहो, अपने भाव प्रभु को समर्पित करते रहो,
केशव केशव कुकिये न कुकिये आसार
दिन रात के कूकते कबहुँ भनक पड़ेगी कान
अर्थात यदि भाव पूर्ण दशा में प्रभु को याद करते रहेंगे तो कभी तो हमारी आवाज पुकार दीनदयाल हरि सुनेंगे, आइये भावो को समर्पण करे श्री हरि चरणों में,
एक ऐसा ही सूंदर मीरा बाई जी का भाव जिसे सुनकर कानो में गिरधर प्रेम समाय जाता है श्रवण भी करते है और इस भाव के साथ अपने हृदय के भाव को भी गुनगुनाते है, शायद हरि आज ही सुनेंगे हमारी पुकारो, पुकारो आओ संग मिलकर पुकारे हरि श्री हरि, गोबिंद माधव मुरारी,पुकारो मन से हृदय से भाव से पुकार से पुकारो,केवल केशव,केवल मुरलीमनोहर,माधव,मोहन मुरारी,मनमोहन, माखन चोर,पुकारो पुकारो ना...
ऐकली खड़ी रे मीरा बाई एक्ली खड़ी ओ हो मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
थे केहवो तो सांवरा मैं मोर मुकुट बन जाऊंपेहरण लागे साँवरों रे, मस्तक पर राम जाऊं, वारे मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
थे केहवो तो सांवरा मैं काजलियो बन जाऊं नैन लगावे साँवरों रे, नैना में रम जाऊं, वारे मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
थे केहवो तो सांवरा मैं जल जमुना बन जाऊं न्हावन लागे साँवरों रे, अंग अंग रम जाऊं रे, म्हें तो मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
थे केहवो तो सांवरा मैं पुष्प हार बन जाऊं कंठ में पहरे साँवरों रे, हिवड़ा पर रम जाऊं, म्हें तो मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
थे केहवो तो सांवरा मैं पग पायल बन जाऊं नाचन लागे साँवरों रे, चरणा में रम जाऊं, म्हें तो मोहन आओ तो सही गिरधर आओ तो सही माधव रे मंदिर में मीरा बाई ऐकली खड़ी
हे मोहन ! मेरे दिल की प्रार्थना (वृंदासखी )
मुझे यमुना का जल बना लो कहि तुम्हारे अभिषेक में लग जाऊ
मेरा जीवन संवर जाए मैं तुम्हारा चरणामृत बन जाऊ..............
मुझे उस डाली का फूल बना लो जो गूँथ हार तुम्हरे अंग पर लग जाऊ
मेरा जीवन संवर जाए मैं तुम्हारा श्रृंगार बन जाऊ.........................
मुझे चन्दन की लकड़ी ही बना दो घिस घिस तेरे मस्तक पर सज जाऊ
मेरा जीवन संवर जाए जो मैं तुमको शीतलता पहुँचाऊ ................
मुझे सीप का मोती बना लो किसी लटकन में लगकर तेरा रूप मैं सजाऊ
मेरा जीवन संवर जाए मैं जो हार में तेरे जड़ा जाऊ........ ............
मुझे बृजकी रज ही बना दो तेरे चरणों में बिछ कर रौंदा जाऊ...
मेरा जीवन संवर जाए मैं तेरे चरणों से लिपट जाऊ........
मुझे किसी वृक्ष की डाली ही बना लो जहाँ तेरा झूला लगवाऊ
मेरा जीवन संवर जाए मैं तुमको अपनी छाँव में झुलाऊ......
मुझे कपास की कली ही बना दो जो तेरी बाति बन जाऊ......
मेरा जीवन संवर जाए मैं आरती में अपने को जलाऊ
मुझे किसी बांस की पोरी बना लो जो तेरी मुरली मैं बन जाऊ...
मेरा जीवन संवर जाए मैं तेरी साँसों से महक जाऊ........
मुझे गोबिंद अपना बना लो कैसे भी तेरी सेवा में लग जाऊ......
मेरा जीवन संवर जाए में तेरे चरणों में मर जाऊ...................
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