श्री राधा - माधुरी श्री राधा जी की रस-माधुरी निहार कर मनमोहन आज अति हर्षित हो गए है, सुध-बुध बिसरा कर केवल लाडिली जी को एकटक निहार...
श्री राधा - माधुरी
श्री राधा जी की रस-माधुरी निहार कर मनमोहन आज अति हर्षित हो गए है, सुध-बुध बिसरा कर केवल लाडिली जी को एकटक निहार रहे है, उनके चेहरे की आभा लालिमा युक्त गुलाब की पंखुड़ियों के जैसे दिखाई दे रही है, वैसे तो लाला कालिमा युक्त आभा वाले है, किन्तु आज उनके सांवले गालों पर लालिमा उभर रही है,सखियाँ लाला जी को देख कर मुस्कुरा रही है, और लाला श्री राधा जू को निहार रहे है, क्या कारण है? तो सखी बतलाती है,
"हमारी किशोरी जी तो कुमुदनी की भाँती अति कोमल और गौरवर्ण है, जो किसी भी का मन -मोहन कर लेती है, त्रिलोकी में श्री जी की सुंदरता के समान कोई नहीं है, उनकी प्रशंसा के लिए कोई उपमा कोई उपमान नहीं बना है, तो उनकी सुंदरता का वर्णन किया नहीं जा सकता है",
इक तो वैसेई अंग गुलाब से I
तोहू पे साजि है सारी गुलाबी II
महाभागा श्री राधिका जी की कांति की शोभा अतुलनीय है, इतना सूंदर स्वरुप है, एक एक अंग गुलाब की पंखुड़ियों सा कोमल और सूंदर है, एक तो पहिले से श्री जी इतनी मनमोहक है की कोटि कोटि कामदेव लज्जित हो जाए उस पर भी आज तो कमाल हो गया है क्योंकि गुलाबी आभा वाली श्री जी ने गुलाबी ही साड़ी धारण किन्ही है, अर्थात श्री जी की शोभा अत्यंत चरम सीमा पर है,
डारि है चूर सबै उपमा I
जब ऊपर ओढ़नी डारि गुलाबी II
ऐसी शोभा है प्यारी जू की लाल जी भी अत्यंत मदहोशी की हालत में हो गए है, उन्हें निहार कर,गुलाब जैसी अंग आभा, गुलाबी साड़ी और हद तो तब हो गयी, बात तो और अधिक गंभीर हो गयी, हालत लाल जी के ह्रदय को विदीर्ण करने वाले तो तब हुए जब साड़ी के ऊपर श्री जी ने रत्नो और तारो से जड़ित मनोहारी गुलाबी ओढ़नी ऊपर से डाल ली, आज तो कोटि कोटि चन्द्रमा भी लज्जा रहे है, किशोरी जी को देख कर,
लाडिली के अधरान गुलाबी I
जबै मुसिकान पधारि गुलाबी II
लाडिली जू के, आधार की शोभा क्या बताऊ जैसे गुलाब की ही पंखुडिया पानी कोमलता और लालिमा के साथ उनके अधर बन गए हो, और उन अधरों ने जब थोड़ा सा मुस्कराहट लिया तो वो और भी गुलाबी लग रहे है, ऐसा लग रहा है जैसे प्रिय जी अपने प्रीतम को निहार कर शर्म से लाल हो रही है और मंद मंद मुस्कुरा रही है, लाल जी के प्रेम के कारण उनकी होठो की लालिमा और अधिक पुलकायमान हो रही है, ऐसी मोहिनी डारि है श्री जी के रूप ने की लाल जी तो सुध-बुध बिसरा गए है, बौरा से गए है, उन्हें अपने आप का कोई भान ही नहीं है,
श्याम को काम भयौ 'अलि' I
है गयो, लाल बिहारी गुलाबी II
हज़ारो, करोड़ो काम को भी मुग्ध कर देने वाली ऐसी रूपराशि श्री प्रिय जू को निहार कर लाल जी भी मंत्रमुग्ध और काम के वशीभूत हो गए है, एकटक लाडिली जी को निहार रहे है, उन्हें आलिंगन कर लेने के वास्ते तडप रहे है, जैसे भंवरा कुमुदिनी से मकरंद चुरा लेना चाहता है आज लाल जी प्रिय जी आस-पास भँवरे के जैसे लोट-पॉट हो रहे है, उनकी दशा विह्वल हो रही है, किसी भी प्रकार से प्रिय जी को अपने पास बिठलाकर उनकी रस-माधुर्य का पान कर लेना चाहते है, उनकी ऐसी दशा हो गयी है अतिशय प्रेम के कारण की वह स्वयं श्री प्रिय जी के रंग में रंगकर गुलाबी दिखाई पड रहे है, अर्थात प्रिय जी के प्रेम के कारण लालबिहारी जी स्वयं लाल हो गए है, गुलाबी हो गए है,
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