श्री कृष्ण बाललीला पदावली -विकास अग्रवाल- पद - Vikas Aggarwal ______________________ -बालस्वरूप वर्णन- -1- बेनी अति...
श्री कृष्ण बाललीला
पदावली
-विकास अग्रवाल-
पद - Vikas Aggarwal
______________________
-बालस्वरूप वर्णन-
-1-
बेनी अति सुठि सोहनी सोहे शीश पर ओ नन्द के लाल
कजरा कारा अँखियाँ में डाला,काली बेंदी बनी है भाल
बेसर की लटकन सोभित नासा, चंदन तिलक गोपाल
कुंडल मकराकृत कानन में, मोर पखा सिर नन्दलाल
या छबि निरखमोहन की वृन्दासखी हुआ हाल-बेहाल
बहे निरंतर अश्रुधारा विरह तरसे मिलन को सबकाल
-2-
चलत फिरत,उठत गिरत मनमोहन आँगन नन्द बाबा के
हर्षित मुदित मन मैया का जब से मिल्यो कृष्णचन्द आ के
रुठत रोवत कभी हंसी हंसी छुप जावत खम्ब के पीछे जाके
मांगे माखन सरस स्वादिष्ट कभी खावत वृंदसखी संग लुटा के
-माखन चोरी -
गोबिंद गोपाल नटवर नगर माखनचोर नंदलाल
लटकी मटकिया छकड़े ऊँचे फोरि सब ग्वालबाल
बाँटि बाँटि खावत हँसत मुस्कात मुख सौ लपटात
बड़े भाग वृन्दासखी लखि लूटत दधि माखन गोपाल
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-गौचारण लीला-
कैसे सहज मनमोहन अति सोहने लिए लकुटी हाथ ग्वाल-बाल सब साथ
चले गोबिंद हेरि हेरि गउअन बन माहि चरावत है तीनहू लोकन के नाथ
खेलत बन बाल मदन गोपाल संग ग्वाल धमक धमक चलत दौड़त नाथ
भागत कूदत छोरे कभी पकड़त,उछल उछल फैंकत गेंद करत हिय घात
या लीला मोहन की अद्भुत अनूठी सुंदर निरखत मोरे हृदय नहीं समात
धूल धूसरित,मधु कण,सोहत सुंदर भाल,या छबि पे वृन्दासखी बार बार बलिजात
-माटी -लीला-
धुलन धूसरित कान्हा फिरत जमुना कुलन पे,
लीला अद्भुत रचन हेत माटी ले लाई मुख में,
दौड़त धावत गोप गोपिया पहुंचे यशुमति माँ पे,
बातन सब कहि कैसे मोहन खावत माटी मुख में,
दौड़ी पहुंची मैया जहां मोहन कर्ण पकड़ लिए कर में,
धरि चपत एक प्यार भरी कोमल से गालन पे,
दिखाया खोल मुख मनमोहन सृष्टि बसी कण्ठन में,
दिखाया खोल मुख मनमोहन सृष्टि बसी कण्ठन में,
चकराई अकुलाई वृन्दासखी ये कैसी लखि माया मुख में,
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-नाग-लीला-
गोबिंद के मन या हिं खेले गेंद यमुना तट जाहिं
ग्वालन सब संग लिए पहुंचे यमुना कुल पर आहिं
धावत-फैंकत दूर गेंद कभी पकड़े कभी छोड़े जाहिं
बिचारि लीला करने की डाली गेंद जमुना जल माहि
मधुमंगल किया झगड़ा मोहन निकालो गेंद अब जाहि
कूदो कृष्ण जमुना गहरे पहुंचो नाग नागिन बसे जाहि
पूंछ मरोरि कालिया नाग बाँध लियो दोनों भुजा माहीं
भय से कम्पत नागिन-नाग शरण बोलत त्राहि त्राहि
करुणादृष्टि करुणामयी प्रभु शरणागत त्यागत नाहीं
दियो अभयदान नाग नागिन नृत्य करो फन पाहीं
जाओ जमुना से निकलो बसों नाग लोक में जाहिं
वृंदासखी कालिया नाग नाथ्या बृजवासी सुख पाहि
विषय-जाल फन्द सब काटो परे हम शरण में आहिं
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