" बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु क्लेश विकार " श्री हनुमान चालीसा में वर्णित इस वाक्य में श्री गोस्वाम...
"बल
बुद्धि विद्या
देहु मोहि
हरहु क्लेश
विकार"
श्री हनुमान
चालीसा में वर्णित
इस वाक्य में
श्री गोस्वामी जी
प्रार्थना करते है, और
प्रभु से बल,
बुद्धि और विद्या
मांग रहे है,
उन्होंने यहां धन दौलत
और सम्पत्ति की
मांग नहीं की
है, क्योंकि जीवन
में यदि सफल
होना है तो
उसके लिए धन-
दौलत की नहीं,
बल्कि बुद्धि और
ज्ञान की आवश्यकता है,
इस बात
को गहराई से
समझने की आवश्यकता है,मनुष्य जब भी
कभी कितनी भी
बड़ी समस्या में
हो, जीवन में
दुखों के अन्धकार से
गुजर रहा हो
, उसके पास यदि
बुद्धि अर्थात ज्ञान
और विद्या का
बल है, तो
वह बड़ी से
बड़ी तकलीफो में
भी उबर जाता
है, जैसे की
कोई व्यक्ति अपने परिवार
में धन से
सम्पन्न है, किन्तु समय
नहीं है, मिलकर
बैठना परिवार को
समय देना इत्यादि उपलब्ध
नहीं है, ऐसे
में परिवार बिखर
जाते है, तब
धन और दौलत
काम नहीं आता
किन्तु मनुष्य का
विवेक, बुद्धि और
ज्ञान काम आता
है की परिवार
को टूटने से
कैसे बचाया जाए?
तब बुद्धि और
ज्ञान के बल
से संयम और
धैर्यता का आचरण ही
काम आता है,
बड़ी से बड़ी विपत्तियों में ज्ञान और विवेक काम आता है न की धन काम आता है, इसका उदाहरण श्री हनुमंत लाल जी के चरित्र से जाना जा सकता है,
बड़ी से बड़ी विपत्तियों में ज्ञान और विवेक काम आता है न की धन काम आता है, इसका उदाहरण श्री हनुमंत लाल जी के चरित्र से जाना जा सकता है,
हनुमान
जी सागर पार
करते है, माता
जानकी जी की
सुधि लेने, मार्ग
में सुरसा जी
विपत्ति बन कर सामने आ
गयी, तो हनुमान
जी बुद्धि के
बल से उनसे
निपट कर आगे
बढ़ गए, आग
चलकर सिंघनी राक्षसी ने
मार्ग रोका तो
उसे भी बुद्धि
के बल से
मार डाला, लंका
में प्रवेश करने
लगे तो लंकिनी
नामक राक्षसी ने
हनुमान जी को
प्रवेश नहीं करने
दिया, तब बल
का प्रयोग कर
हनुमान जी भीतर प्रवेश
कर गए, ऐसे
कितनी ही विपत्तियों में
बल, बुद्धि और
विवेक से हनुमान
जी आगे बढ़ते
गए, कौन-सी
धन और सम्पदा
की आवश्यकता पड़ी
उन्हें इन कठिनाइयों के
समय, और यदि
धन सम्पदा होती
तब भी इन
कठिन परस्थितियों में
क्या काम आती?
आगे चलकर बहुत ही संयम और बुद्धि के बल पर ही हनुमान जी सीता माता से मिले, रावण जैसे योद्धा से बुद्धि के बल से वार्तालाप किया, अनेको राक्षसो का वध किया, इसी लिए गोस्वामी जी ने उनसे बल, बुद्धि और विद्या की मांग की है,
आगे चलकर बहुत ही संयम और बुद्धि के बल पर ही हनुमान जी सीता माता से मिले, रावण जैसे योद्धा से बुद्धि के बल से वार्तालाप किया, अनेको राक्षसो का वध किया, इसी लिए गोस्वामी जी ने उनसे बल, बुद्धि और विद्या की मांग की है,
मनुष्य जीवन में
अर्थ की आवश्यकता है,
धनोपार्जन अत्यंत आवश्यक है,
किन्तु इसका अर्थ
यह नहीं की
केवल धन ही
सर्वोपरि है, मनुष्य के
पास यदि बुद्धि
और विवेक के
साथ बल है
तो वह अनेकानेक परस्थितियों से
तुरंत बाहर निकल
सकता है, यदि
धन है और
बुद्धि, ज्ञान और
विवेक नहीं है
तो वह धन
भी कोई आनंद
नहीं दे सकता,
एक ना एक
दिन बुद्धिहीन का
धन मुसीबतो का
कारन बन जाएगा,
फिर कोण सा
यत्न बचेगा जो
उसे संकटों से
उबार पायेगा, इसलिए
प्राथमिकता बल, बुद्धि और
ज्ञान को दी
गयी है,
आधुनिकता भरे आज के जीवन में सुख पाने के लिए यदि आवश्यकता है, तो धैर्य, संयम, ज्ञान, बुद्धि , विवेक और शारीरिक क्षमता की अर्थात बल की, आज परिवार संकुचित होते जा रहे है, अर्थ को कमाने के लिए परिवार दूर दूर जाकर बसते है, और वहां भी माँ - बाप दोनों कमाने के लिए निकल जाते हैं, ऐसे में बच्चे अकेले दिन भर घरो में रहते है, बड़े - बुजुर्गों का अभाव हो गया है, ऐसे में मानसिक तनाव, अकेलापन, क्रोध और मानसिक असंतुलन इत्यादि का बाहुल्य देखने में मिलता है, किन्तु यदि परिवार के सदस्यों में ज्ञान, विवेक और संयम है तो वह इन सब परिस्थितयों को भी ख़ुशी ख़ुशी जीवन को कैसे जीना है? ऐसी बातों का प्रबंधन कर सकता है, क्योंकि ये वह स्थितियां है, जो आज के युग में हर व्यक्ति झेल रहा है, इन परस्थितियों का हल धन दौलत से कभी नहीं हो सकता है,
"
जय श्री राम
जी"
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