श्रीमदभगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 3 पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।। 1.3 ।। हे...
श्रीमदभगवद्गीता
अध्याय 1 श्लोक 3
कुटिल बुद्धि वाले दुर्योधन के प्रत्येक कथन में स्वार्थपूर्ण रहस्य छुपा रहता है, तभी वह द्रोणाचार्य जी को पाण्डवों के सेनापति धृष्टद्युम्न के बारे में सीधे सीधे न बताकर उसके पिता द्रुपद जो द्रोणाचार्य से वैर रखता था, उस वैरभाव को याद दिलाने के लिये दुर्योधन यहाँ द्रुपदपुत्रेण शब्द का प्रयोग करता है कि अब वैर निकालने का अच्छा मौका है।
‘पाण्डुपुत्राणाम् एतां व्यूढां महतीं चमूं पश्य’ द्रुपदपुत्र के द्वारा पाण्डवों की इस व्यूहाकार खड़ी हुई बड़ी भारी सेना को देखिये। तात्पर्य है कि जिन पाण्डवों पर आप स्नेह रखते हैं, उन्हीं पाण्डवों ने आपके प्रतिपक्ष में खास आपको मारने वाले द्रुपद पुत्र को सेनापति बनाकर व्यूहरचना करने का अधिकार दिया है
द्रोणके लिये आचार्य सम्बोधन देने में दुर्योधन का यह भाव मालूम देता है कि, आप हम सबके कौरवों और पाण्डवों के आचार्य हैं। शस्त्रविद्या सिखाने वाले होने से आप सबके गुरु हैं। इसलिये आपके मन में किसी का पक्ष या आग्रह नहीं होना चाहिये।यहां दुर्योधन अपनी दुर्बुद्धि या ये कह लें अपने भीतर हार जाने के भय को छिपाकर, कुटिलतापूर्ण बातों से यह सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि, द्रोणाचार्य जी के मन में पांडवों के प्रति कोई सौम्य भाव तो नहीं है, वह निष्पक्ष कौरवों की ओर से लड़ेंगे,
संसार में स्वार्थी लोग, रिश्ते-नाते सब अपना कार्य सिद्ध करने के लिए ऐसा ही बर्ताव करते है,वे अपने मंतव्य को सीधा-सीधा न बोलकर अप्रत्यक्ष रूप से बातें करते है,वे जानते है की जिससे काम लेना है,उसे उसकी कमजोरी या द्वेष याद दिलवाकर कटुता भर दो, जिससे वह उनके अनुरूप कार्य करें,
चापलूसों के शहर हैं जहाँ चालाकियों के डेरे हैं, यहाँ वो लोग रहते हैं जो मेरे मुँह पर मेरे और तेरे मुँह पर तेरे हैं।
ऐसे लोगों से व्यवहार करते समय बहुत बहुत बहुत अधिक सावधान हो जाइये, यह ऐसे लोग है,जो अपना कार्य निकलवाने के लिए आपको भर्मित करते है,आपके परिवार, हितेषी, विश्वासपात्र के प्रति भी आपके मन में जहर डाल देंगे,कटुता भर देंगे,जिससे जो आपके प्रिय भी थे, उन्ही से आप द्वेष कर लेंगे,इसलिए बुद्धि में विवेक रखकर संयमपूर्ण व्यवहार करें।
संयमपूर्वक व्यवहार कैसे होगा? इसके लिए कोई भी कार्य करने का निर्णय लेने से पहले बहुत विचार करो, बार बार विचार करो, विचार करो की जो करने जा रहे हो,उससे किसी धर्म की अवहेलना नहीं होगी, उससे परमपिता परमात्मा रुष्ट नहीं होंगे,फिर भी कुछ समझ न पड़े तो, कुछ समय के लिए उस कार्य को टाल दो ।
क्रमश
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