समय की गति निर्बाध है
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समय की गति निर्बाध है

समय बहता पानी :   समय सदैव गतिशील है, कभी,कही और किसी के  लिए नहीं ठहरता, राजा,रंक या फ़क़ीर कोई ऐसा नहीं जो समय को रोक सके, जैसे बा...

सुंदरकांड का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण : विकास अग्रवाल
तुम ने आँगन नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान्?
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समय बहता पानी :

 



समय सदैव गतिशील है, कभी,कही और किसी के  लिए नहीं ठहरता, राजा,रंक या फ़क़ीर कोई ऐसा नहीं जो समय को रोक सके, जैसे बालू रेत को मुट्ठी में बंद करने का कितना भी प्रयास करो वह फिसल जाती है, हम फिर प्रयास करे उसे रोकने की लकिन वह फिर बाह निकलती है, एक बार या सौ बार कितना भी प्रयास करो व्यर्थ होता जाता है, ऐसे प्रयास का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि जिसका स्वभाव ही बहना है, वह थम नहीं पायेगा, ऐसे ही हमारा जीवन चक्र जो की चल रहा है, रुक नहीं सकता, क्योंकि जीवन काल निर्मित है, बचपन का समय नहीं रहा,जवानी नहीं रही अब बुढ़ापा भी नहीं रहेगा,जो बात निश्चित है,उसका विरोध करना व्यर्थ है,



कहने का तातपर्य यही है की हम अपना जीवन व्यर्थ के प्रयास में खो दे रहे है, जिस बात का प्रयास करना है वह कर ही नहीं रहे, किन्तु उसके विपरीत समय को बाँधने का प्रयास कर रहे है, हम सोचते है जैसे हम चाह रहे है वैसा हो, समय हमारे साथ चले,किन्तु समय हमारे साथ कब चलेगा? जब हम समय के साथ चलेंगे,समय की गति निर्बाध है,हम चाहे की समय हमारा इन्तजार करे, तो हम समय के साथ हो जाएंगे,नहीं कदापि नहीं समय को साथ लेना  है तो हमे  ही  समय के साथ चलना  पड़ेगा ,



समय की गति स्थिर है अर्थात  समय अपनी निश्चित गति से बहता है,वह कभी सांस  नहीं  लेता  अर्थात  कभी थक कर रुकता नहीं है, हम इंसान है जो थक जाते है, हम लोग सोचते है की जब समय अच्छा आएगा  तब  ऐसा करेंगे या वैसा करेंगे लेकिन ऐसा कभी होता ही नहीं, समय तो चलता है निरन्तर  चलता है,वह अच्छा  या बुरा नहीं होता, अच्छा या बुरा तो हमारा संकल्प होता है, यदि हम धीमी गति से दौड़ते है तो पीछे रह जाते है और तेज दौड़ते है तो आगे निकलते है लकिन समय की गति से आगे निकलना कठिन होता है,जब दुःख का सामना हो तो यही मानना चाहिए की हम समय से बहुत पीछे दौड़ रहे है, जितना अधिक पीछे दौड़ेंगे दुःख उतना अधिक होगा,और समय जब बहुत आगे निकल जायेगा तो प्रयास भी बहुत अधिक करना पड़ता है जिससे हम ज्यादा थक जाएंगे और समय के साथ नहीं चल पाएंगे तो और अधिक कष्ट होगा, इसलिए निरंतर समय के साथ बहना ही सुखी जीवन का मूल है,

व्यर्थ का प्रयास की हम समय को रोक लेंगे या आगे निकल जाएंगे व्यर्थ है, समय के साथ बहना ही सुखी जीवन है, निरन्तर बहना, निर्बाध बहना, सुख आया  तो भी बहना, दुःख हुआ  तो भी बहना क्योंकि समय रुकता नहीं तो हमारी  भी गति रूकती  नहीं, यदि दुःख को पकड़  कर बैठ  गए तो समय आगे निकल जाएगा  और सुख  में रम  गए और वही  ठहर  गए तो भी पीछे रह जाएंगे, इसलिए बहना जीवन का आधार है, बहना भी समय की दिशा में यदि विपरीत दिशा में बहने का प्रयास करेंगे तो निराशा ही होगी,क्योंकि बहती धारा के संग  बहना जीवन है उसके विपरीत बहना बहुत कठिन है, 




पारिवारिक  सम्बन्धो   में भी कटुता   तभी   आती   है जब हम प्रवाह  के अनुरूप   नहीं बहते ,बेटा बात नहीं मानता  ये  तो सभी  कहते  है लेकिन ये  नहीं देखते  की क्यों  नहीं मानता ,कुछ  विचार  करो की क्यों  नहीं मानता , कुछ  तुम  भी समझो  उसे या तुम  भी मनो  की वह क्या  कहता  है, सास  बहुत चिड़चिड़  करती  है,बुराई  करती  है मेरी , कभी यह  भी सोचा  की क्यों  करती  है? कभी हम यह  समीक्षा  ही नहीं करते  की गलती  मेरे  भी व्यवहार  में हो सकती  है,बहु  बिलकुल  भी कहा  नहीं मानती ,कभी सास  ये  सोच  ले  की क्यों  नहीं मानती ? क्या  ऐसा कारण  है? कही मेरे  ही कहने या समझने  में गलती  नहीं हो? अगर  पर्तिकिर्या  से पहले  अपनी क्रिया  की समीक्षा  की जाए  तो बहुत सी  समस्या  स्वतः  ही समाप्त  हो जायेगी ,समय की समीक्षा  करके  विचार  प्रस्तुत  करना भी समय के साथ बहना जैसा  है, जोकि  हमारे पारिवारिक  जीवन को उन्नत ,खुशहाल  और शांतिमय  बना  देगा ,



समय के साथ बहना कैसे है? अब यह मुख्य विचार करना है, इस कड़ी में हमे यह जानना होगा की समय बह रहा है यह निश्चित है, लकिन हम बह रहे है या नहीं इस बात को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि समय दिखाई नहीं देता उसका प्रभाव दिखाई देता है, हम पहले बच्चे थे, जवान हुए,बूढ़े होंगे यह सब दिखाई देता है लेकिन इस बदलाव का समय दिखाई नहीं देता, पहले सूंदर थे, फिर ढाढी आने लगी चमड़ी पर झुरिया आने लगी, बाल सफ़ेद होने लगे प्रभाव दिख रहा है समय नहीं दिख रहा, तो इन प्रभाव को देखकर हमे अपनी गति देखनी होगी, हमे भी इन प्रभाव के अनुसार दौड़ना होगा,  बीस साल की उम्र में हम सोचते है की कोई काम तब करेंगे जब पच्चीस के हो जायेंगे,पच्चीस वाला सोचता है पैंतीस की उम्र में,ऐसा सोचते है लकिन समय निकल जाता है, न हम वो करते जो बीस साल के समय करना था न वो जो पच्चीस या पैंतीस के समय, और बाद में पश्चाताप होता है की हम तो कुछ कर ही नहीं पाए,इसलिए जिस भी उम्र में जो करना हो कर लो समय का इन्तजार मत करो समय तो मुड़कर देखने वाला नहीं है, वो तो चलता ही रहेगा, समय कभी तुम्हारे लिए इन्तजार नहीं करेगा उसका स्वभाव ही चलना है,वह कभी किसी के लिए नहीं रुकता इसलिए भागना तो हमे ही पड़ेगा समय की गति से, यही सुखी जीवन का आधार है,
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