जल:- एक व्यथा (पानी ही तो है, बहने दो) हम लोग आये दिन नए नए स्लोगन पढ़ते और लिखते रहते है जल के बारे में,अच्छा है लेकिन क्या सही मायन...
जल:- एक व्यथा (पानी ही तो है, बहने दो)
हम लोग आये दिन नए नए स्लोगन पढ़ते और लिखते रहते है जल के बारे में,अच्छा है लेकिन क्या सही मायने में हम इन वाक्यों की गंभीरता को समझते है, शायद नहीं,
सुख चुकी साऱी निर्झरनियाँ सूखे मीठे पानी के सोते I
नदी मेरे अंदर की कहाँ खो गयी? गाते मटके रोते रोते II
बहती थी सागर सी नदियां गाँव गाँव पर्वतो से होते I
जलधारा अमृत धारा कहाँ खो गयी? पूछे सब रोते रोते II
सर-सरोवर की रौनक लूट गयी कोई चल- पहल नहीं है I
कूप-वापी सब सुख गयी अब बचा कोई पनघट नहीं है, II
ये क्या घट रहा है? मानव क्या, तुझको कुछ समझ नहीं है I
इंसानियत तेरी कहाँ खो गयी?नई पीढ़ी पूछेगी यह रोते- रोते II
जल से जीवन,जीवन ही जल, इस बात को हमे अपनाना होगा I
जन-जन को हमें चेताना होगा,छोटे संकल्पो से जल बचाना होगा II
भविष्य के संकटो से बचने वास्ते आज ही संकल्प उठाना होगा I
खुशियाँ देनी हैं सबको हमे नहीं देखना कल सबको रोते- रोते II
समाज को ख़ुशी जीवन का तोहफा देना है,जो आने वाले कल I
शुभ संकल्प से, हर यथा प्रयास से हे मानव !आज बचा ले जल II
अनमोल रत्न जीवन का हैं जल,बचालो बून्द बून्द इसकी हर पल I
बून्द बून्द से दरिया भरते,नहीं देखेंगे जल बिन जीवन खोते खोते II
नदी मेरे अंदर की कहाँ खो गयी? गाते मटके रोते रोते II
बहती थी सागर सी नदियां गाँव गाँव पर्वतो से होते I
जलधारा अमृत धारा कहाँ खो गयी? पूछे सब रोते रोते II
सर-सरोवर की रौनक लूट गयी कोई चल- पहल नहीं है I
कूप-वापी सब सुख गयी अब बचा कोई पनघट नहीं है, II
ये क्या घट रहा है? मानव क्या, तुझको कुछ समझ नहीं है I
इंसानियत तेरी कहाँ खो गयी?नई पीढ़ी पूछेगी यह रोते- रोते II
जल से जीवन,जीवन ही जल, इस बात को हमे अपनाना होगा I
जन-जन को हमें चेताना होगा,छोटे संकल्पो से जल बचाना होगा II
भविष्य के संकटो से बचने वास्ते आज ही संकल्प उठाना होगा I
खुशियाँ देनी हैं सबको हमे नहीं देखना कल सबको रोते- रोते II
समाज को ख़ुशी जीवन का तोहफा देना है,जो आने वाले कल I
शुभ संकल्प से, हर यथा प्रयास से हे मानव !आज बचा ले जल II
अनमोल रत्न जीवन का हैं जल,बचालो बून्द बून्द इसकी हर पल I
बून्द बून्द से दरिया भरते,नहीं देखेंगे जल बिन जीवन खोते खोते II
2) जल है तो कल हैं।
3) जल जीवन का अनमोल रतन, इसे बचाने का करो जतन।
4) जल संरक्षण, जरुरत भी और कर्तव्य भी।
5) हम अपने भविष्य को सुरक्षित कर, जल बचाये, जीवन बचाये।
6) बूंद बूंद से भरती है घागर और कई घागरो से बनता है महासागर।
7) जल तो है सोना, इसे कभी भी नहीं खोना।
8) आज रंग बरसे, कल पानी को तरसे।
सही मायने में ये वाक्य तभी सार्थक हो सकते है, जब हम इन शब्दों के अर्थ को और इनके महत्व को प्रैक्टिकल जीवन में समझे और प्रयोग में लाये, कहने को हम कह देते है है की पानी बचाओ लेकिन खुद ही अपने जीवन में इस बात को लागू नहीं करते,
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जो हम सबको जानने की आवश्यकता है, जैसे की पूरी पृथ्वी पर जल का 97 % भाग पिने योग्य नहीं है जो की समुद्री अर्थात खरा है, बाकी 3 % जो पिने योग्य है उसका भी केवल 1% ही हम लोगो को पीने के लिए मिलता है बाकी 2 % ग्लेशियर और बर्फ के रूप में है, अर्थात बहुत कम मात्रा में जल पीने योग्य है और हम लोग इसे व्यर्थ गवा रहे है, क्योंकि अभी हमे जल सहूलियत से प्राप्त हो रहा है,
किन्तु कुछ नज़र ऐसे स्थानों पर भी डालो जहाँ कई कई किलो मीटर पैदल चलकर भर कर लाना पड़ता है,जहाँ लोग पीने के पानी की बून्द बून्द को तरसते है, यह बिलकुल सच है की हम लोग जो शहरो में रहते है, हमे पानी चौबीसो घंटे उपलब्ध रहता है,किन्तु ऐसे भी गाँव.कसबे है जहाँ बहुत ही सीमित जल की उपलब्धि होती है, लोगो को कई कई दिन के लिए पीने का पानी जमा करके रखना पड़ता है और बहुत ही सीमित रूप से प्रयोग करना पड़ता है, हम लोग घंटो घंटो फुहारों के निचे नहाने का मज़ा लेते है, जहां आधा बाल्टी पानी से काम चल सकता है वहाँ सैकड़ो लीटर जल नालियों में बहा देते है, जब आधा गिलास पानी पीना होता है आधा झूठन में गिरा देते है, और भी बहुत सी आदते जैसे ब्रश करते हुए, शेव करते हुए और व्यर्थ में नल चालू छोड़ना, घर आँगन जहाँ सुखी झाड़ू से सफाई हो सकती है व्यर्थ कई कई बाल्टियां पानी की उड़ेल देते है, क्यों? आखिर क्यों ?
इसका एक ही जवाब है की हम पढ़े लिखे मुर्ख है, जोकि जल की कमी की समस्या को बहुत ही साधारण समस्या समझते है, हमने अभी पानी की कमी देखी नहीं है, इस बार गर्मियों की छुटिया मनाने किसी ऐसे स्थान पर जाओ जहां नदिया बहती है,देखो आज से बीस-तीस वर्षो पहले जो नदियां सागर के जैसे गरजती थी आज उनका स्वरुप नाले के जैसा हो गया है, जिन कुओं में जल लबालब भरा रहता था आज उनके तल में भी जल नहीं मिलता, पहले वर्षा का बहुत जल बरसता था जो आजकल बहुत कम होने लगी है. गर्मी की भीषणता बढ़ती जा रही है, ऐसे में जल की कमी सदैव बढ़ने वाली है,और आने वाली पीढ़ियां जोकि हमारी ही संतान है, इस समस्या की उग्रता और दर्द को सहने वाले है, आज हम इस समस्या की गंभीरता को नहीं समझते जिसका दुष्परिणाम हमारी ही आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा,
आज जल की कमी के दुष्परिणाम हम भी कुछ हद तक देख रहे है, नदिया जोकि पानी के अभाव से गंदे नालो में परवर्तित हो रही है क्यों? क्योंकि गंदगी और कूड़ा बहकर ले जाने वाली बड़ी नदिया रही ही नहीं, उनमे पानी का भाव ही नहीं रहा, यदि पानी की कमी होती रही तो शहरो की नालिया और सीवरेज सिस्टम भी ऐसे ही सड़ते रहेंगे, सफाई नहीं रहेगी, बीमारिया पनपेगी,जैसा की हम देखते है, शहरो में भी मच्चर मक्खियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, खेती के लिए पानी नहीं होगा तो अनाज कैसे होगा? आजकल अन्नाज के दाम बढ़ने का कारण भी पानी की कमी है, क्योंकि सीमित पानी होने से सीमित फसले पैदा होती है, माँग से कम उत्पादन होने से कीमते अधिक हो रही है,
संक्षेप में कहे तो जल हमारे भौतिक,आर्थिक और सामाजिक सब प्रकार के जीवन को प्रभावित करता है, यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को खुश और समृद्ध देखना चाहते है तो आज ही हम सबको संकल्प करना चाहिए की जल की एक भी बून्द को व्यर्थ नहीं गवाएंगे, जल को हर यथा प्रयास बचाएंगे और अपने बच्चो को भी इसी के लिए प्रेरित करेंगे,आज का हमारा शुभ संकल्प हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी शुभ समय दे सकता है,
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