Pain of Hunger आज कोई कहानी नहीं, कोई कविता नहीं, बल्कि एक सत्य बताने जा रहा हु और साथ ही कुछ दिखाने भी, ऐसा जिसने मुझे झकजोर...
Pain of Hunger
आज कोई कहानी नहीं, कोई कविता नहीं, बल्कि एक सत्य बताने जा रहा हु और साथ ही कुछ दिखाने भी, ऐसा जिसने मुझे झकजोर दिया और कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया, कुछ दिनों पहले में मुंबई किसी काम से गया था, काम के साथ साथ एन्जॉय भी था, दिन में काम की व्यस्तता लकिन शाम को बहुत से एंटरटेनमेंट कार्यकर्मो में भाग लिया, ऐसी पार्टीज जहाँ बहुत कुछ खाने को, पीने को और बहुत कुछ उड़ाने को, अर्थात यही की जितना खाना है खाओ जितना फैकना है फेको, एक चीज का स्वाद चखो और चार व्यर्थ में कचरे में डाल दो, मै ही नहीं दूसरे हज़ारो पढ़े- लिखे और नामी लोग ऐसा कर रहे थे, ठीक है ऐसा ही होता है, हाई-सोसाइटी मै शायद, ऐसे ही हमारे यहाँ शादी-ब्याह मेँ लाखो का भोजन और मिठाइयाँ व्यर्थ कर देते है, पार्टीज के नाम पर हज़ारो रूपये का भोजन खराब करते है,
जो लोग लिखते है " इतना डालो थाली मेँ, व्यर्थ न जाये नाली मेँ" ऐसे समाज के ठेकेदारों को जो कहते है, ऐसा वे भी अपनी बारी आने पर भूल जाते है, कि भोजन को व्यर्थ नहीं डालना चाहिए, खैर ये सब अभी तक में भी नहीं समझ पाया था, मूर्खता से भरा ऐसा आचरण लगभग हम सभी करते है, लेकिन जब में मुंबई से वापिस अपने शहर के लिए ट्रैन से चला, तो रास्ते में कुछ ऐसा देखा जिससे मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आने लगा, मेरी रूह कांपने लगी, ऐसा क्या देखा आइये बताता हूँ,
"रास्ते मेँ ट्रैन नागपुर रेलवे स्टेशन पर बीस मिनट के लिए ठहरी, मै खिड़की के पास बैठा बाहर देख रहा था, कि क्या देखा, एक पिता और उसका छह या सात साल का बच्चा बहुत ही गंदे और मैले से कपडे पहने, पास ही कूड़ा बिन कर लाया गया कूड़े से भरा थैला, पास मै गन्दा नाला बह रहा है, मखिया मछर भिन्न भिन्न कर रहे है, बहुत ही दयनीय स्थिति उस से भी बढ़कर जब मैंने उनकी भूख का दर्द देखा, तो बहुत ही हैरान और परेशान हो गया, कूड़ा जिसमे हम जैसे लोगो ने खाना फैक दिया था बचा हुआ, कूड़े मेँ, या व्यर्थ जो झूठा छोड़ दिया था और फॉयल पेपर मेँ पुड़िया बना कर फैक दिया था, वो दोनों बाप बेटा उस भोजन को खोज-खोज कर खा रहे है, उनकी भूख का दर्द कौन समझ सकता है? कम से कम A c कोच मेँ बैठा कोई इंसान नहीं, ऐसे बच्चे जो घर पर एक गिलास पानी का खुद नहीं ले सकते, जिनको खाना इतना मिला है कि खाने से ज्यादा फेकने मेँ मजा आता है,
जी हां बात कड़वी है, लेकिन सोचना जरूरी है, कि क्या खाना व्यर्थ करके या झूठा फेक कर हम सही कर रहे है? क्या ब्याह-शादियों के नाम पर, गृह-प्रवेश के नाम पर , जन्मदिन कि पार्टी के नाम पर कितना कुछ व्यर्थ करते है, क्या उसका कुछ भाग यदि किसी जरूरत मंद या भूखे व्यक्ति को मिल जाए तो क्या उचित नहीं है? मै ये नहीं कह रहा कि खुशियाँ मत मनाओ,जन्मदिन मत मनाओ, ब्याह न करो करो सबकुछ लेकिन थोड़ा संयम आवश्यक है, जितना आवश्यक है उतना ही भोजन बनवाये,और किसी कारणवश भोजन अधिक बच जाता है तो उसे किसी ऐसे स्थान पर बाँट देना चाहिए जहां वास्तव मेँ इसकी जरूरत है, मेरे इस लेख का आशय यही है कि व्यर्थ भोजन खराब नहीं करना चाहिए, झूठा भोजन छोड़ने कि अपेक्षा कम भोजन ले, और बचा हुआ भोजन किसी जरूरत मंद को पहुंचा दे, ज्यादा कहने कि बात नहीं है नीचे वाला वीडियो देखिये आप स्वयं भोजन का महत्व और भूख का दर्द महसूस करेंगे,
दोस्तों इस post' के माध्यम से मै यही प्रेरणा देना और लेना चाहता हूँ कि हम सब इस वीडियो के माध्यम से इस बात के लिए प्रेरित हो कि कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं फेकेंगे, और ना ही झूठा भोजन छोड़ेंगे,बल्कि जितना जरूरत हो उतना ही भोजन अपनी थाली मै लेंगे, आपको मेरा यह लेख पसंद आया हो तो आप यह संकल्प करे कि आज के बाद नाही भोजन व्यर्थ करेंगे और नाही कभी झूठा छोड़ेंगे,और इस लेख के माध्यम से अपने परिवार, मित्र और समाज को प्रेरित करेंगे........जय हिन्द
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