ध्यान की गहराई जानने के लिए स्वयं के भीतर कितना प्रकाश (भगवान से सामीप्य)उत्तपन हुआ है यही देखते रहना है........... तुम ने आँग...
ध्यान की गहराई जानने के लिए स्वयं के भीतर कितना प्रकाश (भगवान से सामीप्य)उत्तपन हुआ है यही देखते रहना है...........
तुम ने आँगन नहीं बुहारा कैसे आएंगे भगवान्?
जब तक ध्यान रुपी साधना के द्वारा अंतर्मन और शरीर के विकारो को बुहार कर बाहर नहीं निकाल देंगे तब तक श्री राधारमण जी की प्राप्ति कैसे संभव है?
यह कोई ज्ञान झाड़ने के लिए नहीं है, जीवन का सत्य यही है, जबतक किसी स्थान पर कोई एक वस्तु पड़ी है दूसरे को स्थान नहीं मिल सकता, दूसरे को स्थान देने के लिए कोई स्थान खाली करना ही पड़ता है, ऐसे ही हमारे शरीर में विकार, मन में विचार और हृदय में संसार बसा हुआ है, तो शरीर में प्रभु प्रेम का प्रकाश, मन में उजास और हृदय में वास कैसे हो सकता है, इन सब को रिक्त तो करना ही होगा अगर सही मायने में प्रभु को पाना है तो, अब प्रश्न यही सामने आता है की, कैसे रिक्तता को पाया जाए? कैसे खाली करे अपने आपको? इसका जवाब सभी जानते है कोई नई बात नहीं हो रही यह, जब तक ध्यान ( मैडिटेशन) का अभ्यास नहीं करेंगे, जब तक विचारो के प्रवाह को खाली नहीं कर देंगे कुछ नया पाना तो दूर, उसके बारे में सोच भी नहीं सकते, क्यों? क्योंकि सोचने के लिए भी तो दिमाग का खाली होना जरूरी है, जब हम अनेकानेक ख्यालो में,विचारो में उलझे रहते है तो जो सही मायने में सोचना है, जिस के लिए हम प्रयास करते है, जिसे हम पाना चाहते है, जो जीवन का सही उदेश्य है उसकी ओर बढ़ ही नहीं सकते, क्योकि बढ़ना तो तब होगा, जब हम उस विषय को सोचने, समझने और जानने के लिए रिक्त होंगे,
चलिए, कोशिश करते है रिक्तता की ओर अगसर होने की, कैसे?
तन की सफाई पहले करनी है, क्योंकि साफ़ तन में ही साफ़ मन का वास होता है, शारीरिक महक इसलिए आवश्यक है क्योंकि जो आस - पास का वातावरण है वह शरीर की महक से ही मन को लुभाता है, अगर शरीर में दुर्गन्ध आएगी तो कैसे अंदर की सफाई पर ध्यान जाएगा, इसलिए सर्वप्रथम बाह्य शरीर की सुंदरता और सफाई के लिए कहा है, क्योंकि साफ़ शरीर ही रोगमुक्त होता है, रोग मानसिक तौर पर भी इंसान को कमजोर करते है, रोगी काया ध्यान भजन और साधना करने में असमर्थ हो जाते है, शरीर जो की साध्य को प्राप्त करने का साधन है उसे भी सही-सलामत रखना आवश्यक है, यदि उपकरण ही सही नहीं हगा तो इलाज कैसे होगा, जैसे खेती के लिए हल, बैल और कई उपकरण चाहिए यदि वहीं सही नहीं होंगे तो हल कैसे चलेगा, खेती कैसे होगी? फसल की तो दूर की बात है," पहला सुख निरोगी काया "
मौन: इसका अर्थ है शांत चुपचाप रहना किन्तु बाह्य दृष्टि से मौन हो जाना ही मौन नहीं है,बल्कि भीतर अंतर्मन की सभी आवाज़ को शांत कर लेना ही सच्चा मौन है, मौन पहला कदम है आंतरिक सफाई का, जैसे घर की सफाई से पहले झाड़-पूछ की जाती है अर्थात (Dusting), मौन शरीर और मन रुपी घर की डस्टिंग करना है, जैसे जैसे मौन रहना सीख लेंगे, अंतर्मन का कचरा झड़ना शुरू हो जायेगा, अर्थात फालतू के विचार भीतर आना बंद हो जायेंगे और मन में कुछ शांति होने लगेगी, क्योंकि बोलने और सुनने से जो विचार भीतर प्रवेश कर जाते है, वह अनावश्यक होने पर भी हमारे मन बुद्धि और व्यवहार को प्रभावित कर देते है, अतः यही अभ्यास करने की कोशिश करनी चाहिए की अनवश्यक विचार भीतर घर न करे, इसलिए मौन रुपी झाड़-फूंक करते रहना चाहिए, ताकि अनवश्यक विचारो के जाले न लगे, धीरे धीरे इसे करते करते जब मन की सफाई होने लगे, तभी अगले कदम की और बढ़ने की कोशिश करनी है, अर्थात झाड़ -फूँक के बाद अगली बारी है,ध्यान की जो की झाड़ू और पोंछा का काम करेगा अर्थात अंतर्मन की पूर्ण सफाई,
ध्यान: मौन का ही वृहद् रूप अर्थात विकसित रूप है ध्यान, ध्यान है अंतर्मन को पूर्ण रिक्त करने का उपाय,जब कोई विचार भीतर नहीं रहेगा पूर्ण शांतचित हो जाएगा,आरम्भ में बहुत विचार एक प्रचंड प्रवाह बन कर हिलोरे लेने लगेंगे, जैसे बिना लगाम के घोड़े बेकाबू होने लगते है, आंतरिक झटपटाहट झकझोरने लगेंगी, बहुत से बे फिजूल के विचार प्रहार करने लगेंगे, किन्तु कोई घबराहट कोई उतावलापन नहीं है,जैसे सागर की तेज धराये जोर जोर से चट्टान पर प्रहार करती है, एक के बाद एक उछाल उछाल लेकर उसे हिलाने का पर्यटन करती है, किन्तु जब चट्टान नहीं हिलती है अंत में लहरे ही शांत हो जाती है, ऐसे ही जो विचार प्रचंड होकर हमे कमजोर करने की कोशिश करते है शनै-शनै शांत हो जाते है, और फिर एक नई किरण एक नया प्रकाश दिखाई देता है, मन शांत हो जाता है, फिर कोई विचार भीतर नहीं है, कोरे कागज़ जैसा मन दिखाई देता है, स्वेत -स्वेत और केवल स्वेत,
अब इस कोरे कागज़ पर कोई भी नई शुरुआत कर सकते है, जैसा जिसका लक्ष्य होगा उसी के अनुसार नया रंग इस जीवन रुपी canves पर उकेर सकते है, किन्तु अभ्यास मौन का, ध्यान का निरंतर करते रहना है, क्योंकि निरंतर सफाई नहीं होगी तो फिर से जाले, गंदगी और विभिन्न प्रकार का कचरा भर जाएगा,
शुरुआत करते है. तन की निर्मलता से,फिर मनरुपी घोड़े की मौन रुपी लगाम द्वारा नियंत्रित दौड़, ओर फिर दिल की गहराइयों में विचार ओर भावनाओ के प्रबल प्रवाह को ध्यान रुपी बाँध से रोकने का, अर्थात जो आवेश भीतर है उसे बाहर निकाल फेकने का प्रयास, जबरदस्ती नहीं किन्तु संयम के बल से,
तन की सफाई पहले करनी है, क्योंकि साफ़ तन में ही साफ़ मन का वास होता है, शारीरिक महक इसलिए आवश्यक है क्योंकि जो आस - पास का वातावरण है वह शरीर की महक से ही मन को लुभाता है, अगर शरीर में दुर्गन्ध आएगी तो कैसे अंदर की सफाई पर ध्यान जाएगा, इसलिए सर्वप्रथम बाह्य शरीर की सुंदरता और सफाई के लिए कहा है, क्योंकि साफ़ शरीर ही रोगमुक्त होता है, रोग मानसिक तौर पर भी इंसान को कमजोर करते है, रोगी काया ध्यान भजन और साधना करने में असमर्थ हो जाते है, शरीर जो की साध्य को प्राप्त करने का साधन है उसे भी सही-सलामत रखना आवश्यक है, यदि उपकरण ही सही नहीं हगा तो इलाज कैसे होगा, जैसे खेती के लिए हल, बैल और कई उपकरण चाहिए यदि वहीं सही नहीं होंगे तो हल कैसे चलेगा, खेती कैसे होगी? फसल की तो दूर की बात है," पहला सुख निरोगी काया "
मौन: इसका अर्थ है शांत चुपचाप रहना किन्तु बाह्य दृष्टि से मौन हो जाना ही मौन नहीं है,बल्कि भीतर अंतर्मन की सभी आवाज़ को शांत कर लेना ही सच्चा मौन है, मौन पहला कदम है आंतरिक सफाई का, जैसे घर की सफाई से पहले झाड़-पूछ की जाती है अर्थात (Dusting), मौन शरीर और मन रुपी घर की डस्टिंग करना है, जैसे जैसे मौन रहना सीख लेंगे, अंतर्मन का कचरा झड़ना शुरू हो जायेगा, अर्थात फालतू के विचार भीतर आना बंद हो जायेंगे और मन में कुछ शांति होने लगेगी, क्योंकि बोलने और सुनने से जो विचार भीतर प्रवेश कर जाते है, वह अनावश्यक होने पर भी हमारे मन बुद्धि और व्यवहार को प्रभावित कर देते है, अतः यही अभ्यास करने की कोशिश करनी चाहिए की अनवश्यक विचार भीतर घर न करे, इसलिए मौन रुपी झाड़-फूंक करते रहना चाहिए, ताकि अनवश्यक विचारो के जाले न लगे, धीरे धीरे इसे करते करते जब मन की सफाई होने लगे, तभी अगले कदम की और बढ़ने की कोशिश करनी है, अर्थात झाड़ -फूँक के बाद अगली बारी है,ध्यान की जो की झाड़ू और पोंछा का काम करेगा अर्थात अंतर्मन की पूर्ण सफाई,
ध्यान: मौन का ही वृहद् रूप अर्थात विकसित रूप है ध्यान, ध्यान है अंतर्मन को पूर्ण रिक्त करने का उपाय,जब कोई विचार भीतर नहीं रहेगा पूर्ण शांतचित हो जाएगा,आरम्भ में बहुत विचार एक प्रचंड प्रवाह बन कर हिलोरे लेने लगेंगे, जैसे बिना लगाम के घोड़े बेकाबू होने लगते है, आंतरिक झटपटाहट झकझोरने लगेंगी, बहुत से बे फिजूल के विचार प्रहार करने लगेंगे, किन्तु कोई घबराहट कोई उतावलापन नहीं है,जैसे सागर की तेज धराये जोर जोर से चट्टान पर प्रहार करती है, एक के बाद एक उछाल उछाल लेकर उसे हिलाने का पर्यटन करती है, किन्तु जब चट्टान नहीं हिलती है अंत में लहरे ही शांत हो जाती है, ऐसे ही जो विचार प्रचंड होकर हमे कमजोर करने की कोशिश करते है शनै-शनै शांत हो जाते है, और फिर एक नई किरण एक नया प्रकाश दिखाई देता है, मन शांत हो जाता है, फिर कोई विचार भीतर नहीं है, कोरे कागज़ जैसा मन दिखाई देता है, स्वेत -स्वेत और केवल स्वेत,
अब इस कोरे कागज़ पर कोई भी नई शुरुआत कर सकते है, जैसा जिसका लक्ष्य होगा उसी के अनुसार नया रंग इस जीवन रुपी canves पर उकेर सकते है, किन्तु अभ्यास मौन का, ध्यान का निरंतर करते रहना है, क्योंकि निरंतर सफाई नहीं होगी तो फिर से जाले, गंदगी और विभिन्न प्रकार का कचरा भर जाएगा,
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